
सीता हरण
( Sita haran )
पंचवटी में जा राघव ने नंदन कुटी बना डाली
ऋषि मुनि साधु-संतों की होने लगी रखवाली
सूर्पनखा रावण की बहना वन विहार करने आई
राम लखन का रूप देख वो खुद को रोक नहीं पाई
सुंदर रूप धरा नारी का लक्ष्मण ब्याह रचा लो तुम
मेरे भी प्रियतम बन जाओ हृदय बीच बसा लो तुम
मैं श्री राम का सेवक हूं तुम स्वामी से इजहार करो
जाओ शूर्पणखा रघुवर से मधुर प्रेम व्यवहार करो
लक्ष्मण के तीखे वचनों से सूर्पनखा विकराल हुई
पंचवटी नंदन कुटिया में बढ़कर बड़ी बवाल हुई
नाक कान काटी लक्ष्मण ने तीर पे तीर चला डाले
खरदूषण त्रिसिरा को पल में शूर्पणखा ने मरा डाले
लंका में जा शूर्पणखा ने ऐसी अर्ज सुना दी है
तेरे होते मेरे भैया मैंने नाक कटा दी है
स्वर्ण नगरी सोने की जो रावण की है लंका
दसों दिशाओं में दशानन का बजता रहता डंका
ध्यान लगा शिवशंकर का रावण ने सबकुछ जान लिया
आ गए मेरे तारणहार नारायण ने अवतार लिया
श्रीराम अगर अवतारी है तो उनसे युद्ध करूंगा मैं
रघुवर के हाथों मरकर भवसागर पार करूंगा मैं
रावण मारीच को संग लेकर पंचवटी में आता है
मायावी माया मृग बनकर मायाजाल चलाता है
बन भिखारी भिक्षा मांगे झोपड़ी द्वारे टेर लगाता है
अलबेला बाबा बन रावण सीता सन्मुख जाता है
लक्ष्मण रेखा भीतर माता ताजा फल लेकर आई
जैसे रावण कदम बढ़ाता पावक लपटें घिर आई
ठौर ठौर पर संत सयाने पानी नहीं पिया करते
रेखा भीतर सिद्ध योगी भिक्षा नहीं लिया करते
रघुकुल की आन मानकर माता ने कदम बढ़ाया है
कपटी रावण छल से देखो सीता हर के लाया है
सीता माता की खोज में जब रघुनाथ जी आएंगे
राम रावण तब युद्ध होगा तीरों से मार गिराएंगे
रचनाकार : रमाकांत सोनी सुदर्शन
नवलगढ़ जिला झुंझुनू
( राजस्थान )