Soch ki Nagnata

सोच की नग्नता | Soch ki Nagnata

सोच की नग्नता

( Soch ki Nagnata )

 

भरी गागर में और जल भरता नहीं
बदल गई हो दिशा जिसकी
वो तना सीधे खड़ा रहता नहीं

लाख चाहकर भी आप
सोच किसी की बदल सकते नहीं
मिले हो जो संस्कार गर्भ से ही
युवापन के बाद उसे सुधार सकते नहीं

परिवार, पड़ोस ही देता है जन्म
सोच और समझ की
उम्र के बढ़ जाने पर चाहोगे विचार ऊँचे
रंगे दिमाग में और रंग चढ़ता नहीं

व्यर्थ है उम्मीद शुद्ध आचरण की
सिखाई नहीं जब शिशुकाल से
तब कर लो कितनी ही पूजा अर्चना
मांग लो आदि शक्ति या
महाकाल से

अपने स्वप्न और युवा के भविष्य को
बिगाड़ दिया है आपने ही खुद
सोचिए होगा हश्र क्या
पीढ़ियों का
भरी है सोच की न्गनता जब आपने ही

 

मोहन तिवारी

( मुंबई )

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