सोलह श्रृंगार | Kavita Solah Shringar
सोलह श्रृंगार
( Solah Shringar )
मैं तो सुहाग सिंदूर मांग सजाऊँ,
मैं तो कंगन ,चूड़ी खन – खन खनकाऊँ,
मैं तो पायलियाँ छन – छन छनकाऊँ ,
होता नहीं भाग्य में लिखा सबका सोलह श्रृंगार,
चाहिए इसके लिए प्रभु जी की कृपा अपार।
मैं तो मेंहदी हाथ रचाऊँ,
मैं तो महावर पांव लगाऊँ,
काजल से अंखियाँ कजराऊँ ,
होता नहीं भाग्य में लिखा सबका सोलह श्रृंगार,
चाहिए इसके लिए प्रभु जी की कृपा अपार।
मैं तो गजरा केश गुथवाऊँ,
मैं तो माला गले पहनाऊँ ,
कमर करधनी लटकाऊँ,
होता नहीं भाग्य में लिखा सबका सोलह श्रृंगार,
चाहिए इसके लिए प्रभु जी की कृपा अपार।
मैं तो अंगुठियाँ उंगलियों में डालूंगी,
मैं तो बिछिया भी सम्भालूंगी,
झूमका कानों में डाल झूमूंगी,
होता नहीं भाग्य में लिखा सबका सोलह श्रृंगार,
चाहिए इसके लिए प्रभु जी की कृपा अपार।
मैं तो बिंदी माथे चमकाऊं,
मैं तो भक्ति सुगंधि से तन – मन महकाऊँ,
मैं तो वारि- वारि जाऊँ,
होता नहीं भाग्य में लिखा सबका सोलह श्रृंगार,
चाहिए इसके लिए प्रभु जी की कृपा अपार।
मैं तो सबको अपने भाग्य पर इठलवाऊँ,
मैं तो सतीत्व के नैया पे सबका पग धरवाऊँ,
उमरिया सबके सुहाग की लंबी करवाऊँ,
प्राप्त रहे सदा सबको यह सोलह श्रृंगार,
बनी रहे सदा सब पर प्रभु जी की कृपा अपार।
मैं हूँ जिनकी चरणों की दासी,
मुझे अपने से भी ज्यादा चाहने वाले,
वे तो मेरे सर्वस्व, हैं अजर – अमर- अविनाशी।
हैं आराध्य मेरे घट – घट वासी।
प्राप्त रहे सदा मुझे उनका दुलार।
प्राप्त रहे सदा मुझे उनके नाम का सोलह श्रृंगार।
बनी रहे सदा मुझ पर उनकी कृपा अपार।
रचयिता – श्रीमती सुमा मण्डल
वार्ड क्रमांक 14 पी व्ही 116
नगर पंचायत पखांजूर
जिला कांकेर छत्तीसगढ़