दिल से पूछो
( Dil se pucho )
विश्व के धरातल पर ,था सनातन फैला हुआ
हुई क्या कमी ऐसी की आज वह मैला हुआ
भूभाग अछूता था नही, कल कोई हिंदुत्व से
सिमट कर रह गए, क्यों हम अपने कर्तव्य से
आतंकियों के समर मे, हटते गए हम सदा
भाई ही भाई के साथ से,बंटते गए हम सदा
मंदिर टूटे, आस्था टूटी, बदलते ही चले गए
जिसने कहा जैसे हमे, संग उनके चलते गए
जिंदा भले कुछ आज पर, हमारी धरती कहां
होश मे न आए गर आज, थूकेगा कल जहां
गैरत बची है गर , तो होश मे आओ अब भी
वरना रह जाओगे, कहानियां बनकर ही
दृष्टि मे श्रृष्टि कर , पुरखों ने दिया जन्म हमे
दिल से पूछो खुद ही ,क्या दे रहे हैं हम उन्हे
मोहन तिवारी
( मुंबई )