तुम ही तो माँ | Kavita Tum Hi to Maa
तुम ही तो माँ
( Tum Hi to Maa )
सुबह सवेरे जब तुम मुझे उठाती थी,
एक रौशनी सी मेरे आंखों को छू कर जाती थीं।
उठ कर, हाथों से जब मैं आंखें मलती थी,
” सुबह हो गई बेटा ” कह कर तुम सीने से मुझे लगाती थी।
देख कर तुम्हारी प्यारी सी मुस्कान माँ,
मेरे जीवन को रौशन तुम करती थी।
मेरी छोटी – छोटी गलतियों पर यूं ही नहीं तुम पर्दा डाला करती थी।
तुम से ही तो रौशन हुआ मांँ जीवन हमारा,
तुम ही तो माँ मुझे हो सब से प्यारा।
तुम्हारे ममता के इस आंचल में मेरी शाम ढलती थी।
ना जाने माँ तुम ये सब अकेले कैसे करती थी।
दूर होकर रौशनी सी तुम जलती थी।
मेरे जीवन में तुम ही तो माँ रंग भरती थी।
जब उठी मेरी डोली थी। माँ तुम कितना रोई थी।
मेरे सर पर हाथ रखकर,
तुमने अपनी छबि दिखाई थी।
विधि का विधान ऐसा क्यूं माँ?
जन्म तो तुम दी थी, फिर कैसे हुई तुमसे पराई थी ?
क्या ‘तुम ’ बनना इतना कठिन था।
की मुझे रहना परेगा तुमसे अलग माँ?
वो खिलखिलाता बचपन मेरा हो गया है कही गुम माँ।
एक बार फिर रौशन कर दो मेरे जीवन।
लौटा दो मेरा वो खिलखिलाता बचपन।
दीपशिखा
दरभंगा (बिहार)
यह भी पढ़ें :-