Hey Pitratma

हे पित्रात्मा आप परमात्मा

( Hey pitratma aap parmatma ) 

 

जन्म- मरण और मानव बन्धनों से,
छुटकारा पाकर के मोक्ष पा लिया।
मोह- माया तिनको का आशियाना,
छोड़कर परमधाम जो पहुँच गया।।

आज फिर से याद आ गऐ मुझको,
बचपन के वह खिल-खिलाते दिन।
जब बैठा करता था मैं माॅं-पिताजी,
आपके कंधों पर हर एक वो दिन।।

बहुत ही खुश था मैं उस बचपन में,
जब आप लोरी, कहानी सुनाते थे।
लेकिन रोया बहुत था उस वक़्त में,
जब हमारे कन्धों पर आप लेटे थे।।

एक पिता की अहमियत क्या होती,
इसी का अहसास मुझे आज हुआ।
किस‌- २ हालत से आप गुजरे होगें,
खुद पिता बनकर ये समझ आया।।

हे पित्रात्मा करतें वन्दना आराधना,
सब कष्टों व दुष्टों का करों खात्मा।
सदा रखना आशीष, शीतल ‌छाया,
आप ही हमारे परमेश्वर परमात्मा।।

 

रचनाकार : गणपत लाल उदय
अजमेर ( राजस्थान )

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