वाहवाही लूटने लगे | Kavita vaahavaahi lootane lage
वाहवाही लूटने लगे
( Vaahavaahi lootane lage )
छा गए बड़े मंच पर लेकर शब्दों के माया जाल।
हथकंडों से शोहरत पा छवि बनाई बड़ी कमाल।
वाकपटुता के माहिर हो वाह वाही लूटने लगे।
प्रसिद्धि के चक्कर में तार दिलों के टूटने लगे।
अपार जनसमूह सारा चलती हास्य की फुहार।
व्यंग्य बाण तीर चले संचालक कर में पतवार।
ऊंचाइयों के स्तर तक कवि सम्मेलन चलते रहे।
दो चार को छोड़कर बाकी कवि हाथ मलते रहे।
समय का अभाव कहकर संचालक भी चल पड़ा।
बुला लिया यह कहकर कार्यक्रम होगा बहुत बड़ा।
अक्सर ऐसा मंचों पे कवियों के साथ होता आया।
आयोजक संयोजक की सेटिंग का चक्कर पाया।
कुशल कवि रह जाते और चाटुकार चल जाते हैं।
चंद चुटकुले लेकर माहिर कवि मंच पर आते हैं।
कविता का रूप निखरा शब्दबाणों की बरसात।
गीत गजल मुक्तक छुप गए हास्य में कट गई रात।
कवि : रमाकांत सोनी सुदर्शन
नवलगढ़ जिला झुंझुनू
( राजस्थान )