व्यथा | Kavita Vyatha
व्यथा
( Vyatha )
बरसों के अथक परिश्रम का ऐसा हमें फलसफा मिला,
न सम्मानित कोई पदवी मिली न ही कोई नफा मिला।
दबाया कुचला हमें सबने जैसा जिसका मन किया,
कभी अपमानित कभी प्रताड़ित जिसने जब चाहा किया।
अब किससे हम विनय करें किसके जा चरण धरें,
सारे निवेदन व्यर्थ हुए और अब क्या हम करें।
ठोकरों की मार सह सहकर आंखें भी धूमिल हुई,
सांसें लगने लगी भारी जिंदगी भी बोझिल हुई।
सहन नहीं होती अब ये ज्यादतियां उम्मीदें अंतिम हुई,
न जाने ये कब रुकेगा आस में आधी जिंदगी खत्म हुई।।
रचनाकार –मुकेश कुमार सोनकर “सोनकर जी”
रायपुर, ( छत्तीसगढ़ )