Sainik par kavita
Sainik par kavita

मैं सैनिक हूँ 

( Main sainik hoon ) 

 

मैं हूॅं भारतीय  सेना का वीर,

आग हवा कांटे चाहें हो नीर।

सर्दी गर्मी चाहे वर्षा चले घोर,

रखता सदा रायफल सिर मोर।।

 

चाहें हो जाऍं सुबह से शाम,

करता नही कभी में आराम।

घुसनें न दूं दुश्मन अपनी और,

हो जाऍं  रात  चाहे फिर  भोर।।

 

सॅंख्या में हो चाहें बहुत ही ज्यादा,

इससे ज्यादा  मुझको  नहीं आता।

सिर ना झूके मेरा दुश्मन के आगें,

करदू एक-एक सर कलम उनके।।

 

जो छूने  की कौशिश  करें हमको,

उखाड़ ही दूँगा जड़ से ही उसको।

पहुँचा दूँगा उन सब को यम लोक,

फिर नाम न लेंगे घुसनें का परलोक।।

 

आन बान और मेंरा शान तिरंगा,

हम भारतीयों की पहचान तिरंगा।

दिल में बसा हम सभी के तिरंगा,

तीन रंग का यह प्यारा सा तिरंगा।।

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