मतदान करो
मतदान करो

मतदान करें

( Matdan Karen )

( 2 )

कोई नफरत की हवा न दो, चलो मतदान करें,
पुरानी राख न कुरेदो, चलो मतदान करें।
नया ख्वाब, नया भारत, नया मौसम है आया,
गूँज रहे हैं फिजाओं में नारे,चलो मतदान करें।

बदले की आग जला न दे तेरे मन का नक्शा,
खता, वफ़ा, अदावत छोड़,चलो मतदान करें।
सजा मतदान केंद्र हमारी राहों में फूल बिछाके,
हर काम को छोड़कर पहले,चलो मतदान करें।

बड़ा कर्ज है देश का तुम्हारे सुकोमल कंधों पर,
उठेगी फिर से छाँव की दीवाल,चलो मतदान करें।
दुश्मनी तू मन से धो डालो, नहीं तो थक जाओगे,
करो पाक हाथों से राष्ट्रीय कार्य,चलो मतदान करें।

हों न फिर निर्वस्त्र औरतें और न झुग्गियाँ जलें,
क़ायम रहे सदा भाईचारा,चलो मतदान करें।
सोए फिर से चाँदनी के बिस्तर पे ये पूरा देश,
मोहब्बत के दरीचे से निकले सूरज,चलो मतदान करें।

शोहरत की बुलंदी पर रहे ये अपना देश,
कहीं कोई प्यासा न मरे,चलो मतदान करें।
खिजाँ गुलशन में उतरे, उसे रोकना होगा,
रात खा न जाए उजाला,चलो मतदान करें।

मासूम परिन्दे घोंसले में चुगें दाना,ये ठीक नहीं,
वो भी जमीं पे उतरें,नभ में उड़ें,चलो मतदान करें।
बागों का हर फूल हँसे और बिखेरे अपनी खुशबू,
कुछ सुख भोग रहे, कुछ गम में अटके,चलो मतदान करें।

सितारे चमक-चमककर थक गए पलकों पर,
कोई ढंग का चराग़ जलाओ,चलो मतदान करें।
बहता हुआ पानी बना लेता है वो अपना रास्ता,
कतरे -कतरे से बनता है समंदर,
चलो मतदान करें।

( 1 )

चुनावी हवा वो बहाने लगे हैं,
गाँवों-गरीबों में आने लगे हैं।
आँख -मिचौली खेलेंगे फिर से,
मगर दाग अपनी छिपाने लगे हैं,
चुनावी हवा वो बहाने लगे हैं।

ए.सी. के बाहर निकलते ही कम थे,
बदन धूप में वो जलाने लगे हैं।
नफरतों में हो न इजाफा कहीं पे,
नया जोश फिर से दिखाने लगे हैं,
चुनावी हवा वो बहाने लगे हैं।

मुहब्बत का कतरा अब तक मिला न,
दिल-ओ-जान अपना लुटाने लगे हैं।
जश्न -इंतकाम, ये तो चलता रहेगा,
मयखाने मुझको बुलाने लगे हैं,
चुनावी हवा वो बहाने लगे हैं।

मतदान खुलकर करो दोस्तों तुम,
खारों के बीच गुल खिलाने लगे हैं।
ये सितारे जमीं पे फिर से हैं उतरे,
हमें अपने छाले दिखाने लगे हैं,
चुनावी हवा वो बहाने लगे हैं।

गहरा है घाव इन किसानों का देखो,
वादों का मरहम लगाने लगे हैं।
कुछ आएँगे चेहरे,नये कुछ पुराने,
नये हथकड़े आजमाने लगे हैं,
चुनावी हवा वो बहाने लगे हैं।

दिलाए जो रोजगार उसको चुनों तुम,
खुशामद में पांव कुछ दबाने लगे हैं।
दिखाते हैं ख्वाब कितना आँखों को झूठा,
महल-रेत का वो उठाने लगे हैं,
चुनावी हवा वो बहाने लगे हैं।

करप्शन की रोटी खाने न देंगें,
हमें आसमां पे बिठाने लगे हैं।
पिएंगे वो भर-भर वोटों का प्याला,
मेरे अंजुमन में वो आने लगे हैं।
चुनावी हवा वो बहाने लगे हैं।

रामकेश एम यादव (कवि, साहित्यकार)
( मुंबई )

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