काव्य जगत के नन्हें दीप

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काव्य जगत के नन्हें दीप

( Kavy Jagat Ke Nanhen Deep )

 

नया कुछ गीत गाए हम
बच्चों संग बच्चा बन जाएं हम
उलझन की इस बगीया में
खुशीयो के फूल खिलाये हम

 

बाते चाद सितारो की ना
ना बाते जमी आसमाँ की हो
बाते जगमग जुगुनू की और
रंग बिरंगी तितली की हो

 

नन्हें नन्हें सपनो की हों
मासूम मुस्कानों की बाते हों
छलकपट से दूर निर्झर
झरने से बहते पानी की हो

 

कुछ नन्हें हाथो मे देखो
कलम दिखाई दे रही है
शब्दो को माला में रखकर
कानो में रस घोल रही है

 

एसे प्यारे बच्चो संग
आज लगाऐं मेला मिलकर
उनके निर्मल मुखमण्डल से
आभा झरती प्रखर होकर

 

दीप से दीप जलने जैसा
रोशन समा आज बनाया
इन नन्हें प्रहरी ने देखो
नई भोर का सूर्य उगाया

 

हैं छोटे सिपाही कलम के
कद ऊँचा जग में कर रहे
भारत भूमि से वंदन तुमको
शुभआशीष तुम्हें नित दे रहे

??


डॉ. अलका अरोड़ा
“लेखिका एवं थिएटर आर्टिस्ट”
प्रोफेसर – बी एफ आई टी देहरादून

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