खोया है विश्वास
खोया है विश्वास : नवगीत
फटे-पुराने कपड़े उनके,
धूमिल उनकी आस।
जीवन कुंठित है अभाव में,
खोया है विश्वास।।
अवसादों की बहुतायत है,
रूठा है शृंगार।
अंग-अंग में काँटे चुभते,
तन-मन पर अंगार।।
मन विचलित है तप्त धरा है,
कौन बुझाये प्यास।
चीर रही उर पिक की वाणी,
काॅंपे कोमल गात।
रोटी कपड़ा मिलना मुश्किल,
अटल यही बस बात।।
साधन बिन मौन हुआ उर,
करें लोग परिहास।
आग धधकती लाक्षागृह में,
विस्फोटक सामान।
अंतर्मन भी विचलित तपता,
कोई नहीं निदान।
श्रापित होता जीवन सारा,
श्वासें हुई उदास।
कवियत्री: मीना भट्ट सिद्धार्थ
( जबलपुर )
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