टूट गई | नवगीत
टूट गई | नवगीत
साँप मरा ना घुन खायी सी ,
लाठी टूट गई .
जिनकी खातिर आँख फुड़ाई ,
कहें वही काना .
उतना ही वह दुःख भोगता ,
जो जितना स्याना .
चने उगें भी नहीं बतीसी ,
पहले टूट गई .
सीना चीर दिखाया लेकिन ,
गई नहीं शंका .
कंलक हरण का धो न पाई ,
जलकर ज्यों लंका .
दिल में बसकर उम्मीदें ही ,
दिल को लूट गई .
पढ़े – लिखों के सपने खाते ,
गलियों में धक्के .
रिश्वत ने किस्मत के कुछ यूँ ,
जाम किए चक्के .
आया ना था दुश्मन जद में ,
गोली छूट गई .
राजपाल सिंह गुलिया
झज्जर , ( हरियाणा )