ख्वाबों में आ बहकाते हो | Khwab Shayari
ख्वाबों में आ बहकाते हो
( Khwabon mein Aa Bahakate Ho )
ख्वाबों में आ बहकाते हो फुसलाते हो।
मीठी नींद से बेरहमी से उठा जाते हो।
भूलना चाहा मैंने जिस ग़ज़ल को
ख्यालों में आ उसे गुनगुनाते हो ।
जो जाते कहां लौट कर आते हैं।
याद में उनकी क्यों अश्क बहाते हो।
पड़ता नहीं फर्क उन्हें जो हैं गैरों के आगोश में।
कांटा हुए जा रहे हो क्यों खुद को जलाते हो।
इश्क के नशे में हैं नहीं समझेंगे।
दीक्षित उन को क्या समझाते हो।
सुदेश दीक्षित
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