किनारों से पूछो | kinaro se puchho
किनारों से पूछो
( Kinaro se puchho )
फिजाओं का आलम बहारों से पूछो।
दुल्हन की कहानी, कहारों से पूछो।।
कैसे खड़ी है जमाने की सुनकर,
मंजिल जहाँ में, सहारों से पूछो।।
तूफाँ में कश्ती हिलोरें से जो लेवे
न चलने का गम, किनारों से पूछो।।
ना चाहा था तुमको देखेंगे फिर से
मजबूरी नजर की, नजारों से पूछो।।
दवा बेबफाई की होती कहाँ है
टूटे हुए दिल की, दरारों से पूछो।।
दिल को लगाना खता न कोई है
“चंचल” खुद दिल से, हजारों से पूछो।
कवि : भोले प्रसाद नेमा “चंचल”
हर्रई, छिंदवाड़ा
( मध्य प्रदेश )
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