Kisan

हम गांवों के किसान | Kisan

हम गांवों के किसान

( Hum gaon ke kisan ) 

 

हम है गांवों के ग़रीब किसान,
करते-रहते है खेतों पर काम।
मिलता नही हमको पूरा दाम,
लगे रहते खेतों में सवेरे शाम।।

पत्नी बच्चे और ‌सभी घरवाले,
करते है काम खेतों पर साथ।
मिलता है हमें रोटी एवं प्याज,
मिलजुल कर खाते हम साथ।।

कड़ी धूप बारिश एवं यें हवाएं,
कहर सभी ये हम पे है ढ़हाऐ।
बहुत बार रहता सूखा अकाल,
करती भूमि हमको ये कगांल।।

मानसून बना बारिश का आज,
बरस रहा है इस वर्ष में खास।
खिल उठे चेहरे सभी के आज,
गाय भैंस बकरी बैल किसान।।

मूंग मोठ गेंहू चना और चावल,
खेतों में आज ये किसान बोऐ।
जिसको खाकर आज देशों में,
मानव अपना यह नाम कमाऐ।।

थोड़ा बहुत ही रखते हम पास,
बाकी बेच देते संपूर्ण सरकार।
जिससे भी वह टैक्स काटकर,
हमको देती है ये बस कलदार।।

जैसे हुएं है पैदा किसान सभी,
ऐसे ही एक दिन मर जाना है।
आज तक ग़रीब किसानों को,
जमीनदार बनते नही पाया है।।

 

रचनाकार : गणपत लाल उदय
अजमेर ( राजस्थान )

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