Jab nash manuj par chhata hai
Jab nash manuj par chhata hai

जब नाश मनुज पर छाता है

( Jab nash manuj par chhata hai ) 

 

जब नाश मनुज पर छाता है,
बल बुद्धि विवेक हर जाता है।
अंधकार पग पग पर होता,
किस्मत कोसकर तब नर रोता।

नर की नजर में हितेषी भी,
बैरी समान सा लगता है।
कदम-कदम पर मुश्किलें अपार,
दुख तकलीफों से घिरता है।

तीखी वाणी के तीर चले,
मिले बाधा बिगड़े काम सभी।
हर कोई बैरी हो जाता,
संकट सर पर आता तभी।

घनघोर विपदा घेर लेती,
आंधी तूफान छा जाता है।
मंझधार में अटके नैया,
जब नाश मनुज पर छाता है

 

कवि : रमाकांत सोनी सुदर्शन

नवलगढ़ जिला झुंझुनू

( राजस्थान )

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