![kisano ka dard किसानों का दर्द](https://thesahitya.com/wp-content/uploads/2021/01/kisano-ka-dard-696x435.png)
किसानों का दर्द
( Kisano Ka dard )
जो फ़सल बोता है,
वह इसे काटना भी जानता है;
ये किसान है अपना हक़
लेना भी बख़ूबी जानता है ।
ना जाने, वक़्त भी अकसर
कैसे-कैसे रंग दिखाता है;
सबका पेट भरने वाला आजकल
सड़कों पर भूखा सो जाता है ।
उस पार खड़े वर्दीधारी
भी हमारे अपने ही लोग हैं;
बस, यही सोचकर किसान
दंगे-फसाद से घबराता है ।
अपनी एक लाठी से जिसने
गीदड़-भेड़ियों को खदेड़ा है;
वो नासमझ इन्हें लाठी-बंदूक,
आसूँ गैस से डरता है ।
ये भगत सिंह, गाँधी,
छोटूराम की संताने हैं- साहब !
झुकने से पहले मरना क़बूल है
तू किसे डराता है ?
बहुत हो गई तुम्हारी जुमलेबाजी
ऐ सरमायदारों के दोस्त !
छोड़ दो तख़्तो-ताज गर
तुम्हें किसानों का दर्द समझ नहीं आता है।
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कवि : संदीप कटारिया
(करनाल ,हरियाणा)
आपका बहुत-बहुत धन्यवाद !…
thank u sir g.