किस्सा कागज़ का | Kissa Kagaz ka
किस्सा कागज़ का
( Kissa Kagaz ka )
ज़िंदगी का पहला कागज़ बर्थ सर्टिफिकेट होता है।
ज़िंदगी का आख़िरी कागज़ डेथ सर्टिफिकेट होता है।
पढ़ाई लिखाई नौकरी व्यापार आता है काम सभी में,
ज़िंदगी का सारा झमेला भी कागज़ ही होता है।
चूमती है प्रेमिका महबूब का खत अपने होंठो से,
प्रेम का आदान-प्रदान भी कागज़ ही होता है।
आता है कागज़ कभी मनी ऑर्डर के रूप में,
कभी खुशी तो कभी ग़म भी कागज़ ही होता है।
अहमियत कम नहीं होती कागज़ के कोरे होने पर,
लेकिन छपा-लिखा कागज़ ही मूल्यवान ज़्यादा होता है।
कवि : सुमित मानधना ‘गौरव’
सूरत ( गुजरात )