Kohara par Chhand
Kohara par Chhand

कोहरा

( Kohara  ) 

 

मनहरण घनाक्षरी

 

ठंडी ठंडी हवा चली, शीतलहर सी आई।
ओस पड़ रही धुंध सी, देखो छाया कोहरा।

ठिठुरते हाथ पांव, बर्फीली हवाएं चली।
कुदरत का नजारा, कांप रही है धरा।

धुआं धुआं सा छा रहा, धुंधली दिखती राहें।
कोहरा की भरमार, संभल चले जरा।

पड़ रही ओस बूंदे, पत्तों और लताओं पे।
पाला वृष्टि नष्ट करे, खेत हो धान भरा।

 

रचनाकार : रमाकांत सोनी सुदर्शन

नवलगढ़ जिला झुंझुनू

( राजस्थान )

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