Basant ritu par Kavita
Basant ritu par Kavita

बसंत ऋतु के आगमन पर

( Basant ritu ke aagman par )

 

मदिर से है बसंत, आये हैं जी पाहुने से
सखि पिया बिन मोहे, कछु न सुहावत है।।

खखरा के पात उड़, उड़ आये द्वारे आज
पवन के झौकन भी, जिया को जगावत है।।

अमुआ के बौर वाली, वास है सुवास आली
महुआ मदन के तो, मान को बढ़ावत है।।

कूक रही काकपाली, हँस रही हरयाली
उठ भुनसारे तोहे, ‘चंचल’ बुलावत है।।

 

कवि भोले प्रसाद नेमा “चंचल”
हर्रई,  छिंदवाड़ा
( मध्य प्रदेश )

 

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