कोई अपना तो जग में हुआ ही नहीं
कोई अपना तो जग में हुआ ही नहीं
कोई अपना तो जग में हुआ ही नहीं
प्यार क्या है मुझे यह पता ही नहीं
आज वो भी सज़ा दे रहें हैं मुझे
जिन से अपना कोई वास्ता ही नहीं
मैं करूँ भी गिला तो करूँ किसलिए
कोई अपना मुझे तो मिला ही नहीं
जिनसे करनी थी कल हमको बातें बहुत
उसने मौक़ा तो कोई दिया ही नहीं
रूठ जातें हैं पल में हमारे सनम
पर बताते हमारी खता ही नहीं
दिल हमारा मचल जाए उनके लिए
उनमें ऐसी तो कोई अदा ही नहीं
चोट करके वो दिल पर तो ऐसे चले
जैसे दिल ये हमारा दुखा ही नहीं
कह रहा है प्रखर आपसे आज यह
आप में तो बची अब वफ़ा ही नही
महेन्द्र सिंह प्रखर
( बाराबंकी )