ग़ज़ल हिन्दी में | Ghazal Hindi Mein
ग़ज़ल हिन्दी में
( Ghazal Hindi Mein )
( 2 )
आशाओं में बल लगता है
होगा अपना कल लगता है
एक तुम्हारे आ जाने से
यह घर ताजमहल लगता है
सींच रहा जो मन मरुथल को
पावन गंगा जल लगता है
हम तुम साथ चले हैं जब से
जीवन मार्ग सरल लगता है
यह कहना आसान नहीं है
तेरा कौन बदल लगता है
इतने मीठे बोल तुम्हारे
बोल रही कोयल लगता है
घेर उदासी बैठी हमको
दूर कहीं अब चल लगता है
सहता तरुवर कितने पत्थर
जब-जब उसमें फल लगता है
इतना विष का पान किया अब
पग-पग पर ही छल लगता है
तेरे भुजबंधन में साग़र
जंगल में मंगल लगता है
( 1 )
तुमने जो निशिदिन आँखों में आकर अनुराग बसाये हैं
हम रंग बिरंगे फूल सभी उर-उपवन के भर लाये हैं
हर एक निशा में भर दूँगा सूरज की अरुणिम लाली को
बाँहों में आकर तो देखो कितने आलोक समाये हैं
प्रिय साथ तुम्हारा मिलने से हर रस्ता ही आसान हुआ
हम विहगों जैसा पंखों में अपने विश्वास जगाये हैं
जब -जब पूनम की रातों में तुझसे मिलने की हूक उठी
तेरे स्वागत में तब हमने अगणित उर-दीप जलाये हैं
दिन रात छलकते हैं दृग में तेरे यौवन के मस्त कलश
तू प्यास बुझा दे अंतस की जन्मों से आस लगाये हैं
कैसी मधुशाला क्या हाला तेरे मदमाते नयनों से
हम पी पीकर मदमस्त हुये अग -जग सब कुछ बिसराये हैं
उस पल क्या मन पर बीत गयी मत पूछो साग़र तुम हमसे
जब – जब व्याकुल रातों में तुमने गीत विरह के गाये हैं
कवि व शायर: विनय साग़र जायसवाल बरेली
846, शाहबाद, गोंदनी चौक
बरेली 243003
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