क्या पता कौन थे कहाँ के थे
क्या पता कौन थे कहाँ के थे
आते जाते जो कारवाँ के थे
क्या पता कौन थे कहाँ के थे
पंछियों को मुआवज़ा क्यों नइं
रहने वाले इसी मकाँ के थे
इत्र से कुछ गुरेज यूँ भी हुआ
फूल वो भी तो गुलसिताँ के थे
सब हमेशा रहेगा ऐसे ही
सारे झंझट इसी गुमाँ के थे
एक रस्ता था इक निशाँ था और
सारे पीछे उसी निशाँ के थे
ज़ेह्न में लफ्ज़ रह गए बाकी
जाने किसकी भली ज़बाँ के थे
न पसे-आसमाँ न ज़ेरे-ज़मीं
हम थे जो भी इसी जहाँ के थे
इब्तिदा के न इंतिहा के ‘असद’
हम तो बस इनके दरमियाँ के थे
असद अकबराबादी