दर्पण | Laghu Katha Darpan
“मालिक, आप दर्पण क्यों देखते हैं ॽ” रामू ने साहस करते हुए अपने मालिक से पूछा।
“संवरने के लिए।” मालिक ने कहा।
“संवरती तो नारी है, आप नारी हैं क्या ? ” मुंँह लगा रामू ने चुस्की लेते हुए कहा।
“डंडे पड़ेंगे, जो ऐसा कहांँ तो।” फिर मालिक ने उसे हिदायत करते हुए कहा।
“सच जानना अपराध है क्या ॽ ” रामू कब दबने वाला था उसने फिर सवाल उठाया।
“नहीं, लेकिन पड़े डंडे गिनते रहना। पोस्ते की चटनी और डंडे के निशान कैसे लगते दर्पण में।” मालिक ने गुस्से में कहा।
“ठीक है गिन लेंगे आप जैसे लोगों की पोस्ते की चटनी और डंडे की चोट। ” रामू बिल्कुल उतर आया था दर्पण देखने के लिए।
विद्या शंकर विद्यार्थी
रामगढ़, झारखण्ड