“आप कहते हैं कि हम अपने इलाके के बड़े जमींदार में से आते हैं, कहाँ तक सच हैॽ” जज ने रामबदन सिंह से पूछा।
“लोगों की सांस तक कहती हैं।” रामबदन सिंह ने अपनी मूंछें ऐंठते हुए कहा।

“इसका मतलब यह कि आप लोगों में अपना दहशत बनाए रखते हैं और किसी को अपनी मर्जी की सांस भी नहीं लेने देतेॽ” जज ने बात पकड़ते हुए कहा।

“नहीं, लोग अपनी स्वेच्छा से सांस लेते हैं।” रामबदन सिंह ने बात बदलते हुए कहा।
“आपका लहू आपके काबू में नहीं है। उसने एक बेटी की आबरू से खेला, उसके चेहरे पर तेजाब डाला और तो और इससे भी उसका जी नहीं भरा तो उसे बेरहमी से तड़पाते हुए उसकी जान तक,,,,,,, क्या आपने एक बेटी के पिता की जगह दर्द का एहसास किया आपने?” जज की आंखों में आंँसू भर आए। इजलास में ध्यान से सुन रहे सभी विद्वान-अधिवक्ताओं के रोंगटे खड़े हो गए।

“नहीं, वह बिल्कुल मेरे काबू में है और उसके ऊपर जो भी आरोप लगाए गए हैं वे सभी बेबुनियाद और मनगढ़ंत हैं।” रामबदन सिंह ने अपना दलील देते हुए कहा।

“सभी कागजातों के अलावा मेडिकल रिपोर्ट भी अब मेरे पास है और आपकी जुबान आपके पास, इतना तो ध्यान होना ही चाहिए आपको कि आप इजलास में खड़े हैं।”‌ जज ने गंभीर होते हुए कहा।
” ——- ” रामबदन सिंह के पास बोलने के लिए कोई शब्द नहीं थे।

श्रद्धा के माँ-पिता को इंसाफ मिल गया और रामबदन सिंह के बेटे को आजीवन करावास। लोगों के बीच इस बात की चर्चा होने लगी कि आखिर कोई कब तक बंदूक से भय का धुआंँ फैलाएगा।

Vidyashankar vidyarthi

विद्या शंकर विद्यार्थी
रामगढ़, झारखण्ड

यह भी पढ़ें :-

जिस दिन सात फेरे पड़ते हैं | Laghu Katha Saat Phere

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here