नाम | Laghu Katha Naam
अमेरिका से आ कर मधु माथुर दिल्ली के ऐयरपोर्ट पर उतरी तो आवश्यक पूर्ति हेतु कस्टम कक्ष में प्रवेश किया । सामान व व्यक्तिगत चैकिंग पूरी होने के बाद महिला अफसर ने कुछ कागजात मधु की ओर बढा दिए । जैसे ही मधु ने उन्हें मेज पर रख हस्ताक्षर करने के लिए रख स्वयं उनके ऊपर झुकी तो –
” ए ! हाय मधु ! हाउ आर यू ?”
सुना तो मधु का हाथ जहाँ का तहाँ रुक गया और नजर ऊपर उठ गई ।
” हाय मयंक! तुम । कैसे हो ? ”
कहा और अपना हाथ आगे बढ़ा दिया । मधु ने मयंक से हाथ मिला कागजों पर हस्ताक्षर करने के लिए झुकी तो मयंक भी जाने के लिए मुड़ा ,पर उसकी आँखें मधु के पास खड़े एक पांच साल के गोल मटोल सात आठ साल का दिखने वाले बच्चे पर जा कर टिक गई ।
हृष्टपुष्ट शरीर , गोरा चिट्टा रंग ,गोल गोल चिकने गाल , आवारा कट बाल टाँगों में हाफ पैंट और ऊपर लाल टीशर्ट -सभी मिल कर बच्चे को बेहद आकर्षक बना रहे थे केवल मयंक की ही नही वहाँ उपस्थित सभी की आँखे उस पर टिकी थी । मयंक आगे बढ़ा और उसके गाल छू कर –
” ए ,मधु ! ये कौन है ?” पूछ बैठा
” मेरा बेटा है भीष्म ” और तुरन्त दूसरी ओर मुड़ कर
” ये मेरे पति हैं असीम सक्सेना ”
मधु ने तपाक से उत्तर दिया । मयंक ने आगे बढ़ के असीम से हाथ मिलाया और बताया कि वह वहाँ कस्टम ऑफिस में कार्यरत है ।
मधु की सभी आवश्यकताए पूरी हो चुकी थी । असीम और मधु भीष्म का हाथ पकड़ बाहर निकल गए और मयंक उनके कागजात देखने मे व्यस्त । अचानक मयंक हड़बड़ा उठा और बाहर की ओर लपक पड़ा । मधु और असीम दरवाजा पार करने ही वाले थे कि मयंक की आवाज सुन रुक गए और पीछे मुड़ कर देखा तो मयंक मधु को आवाज दे रहा था और हाथ हिला कर वापस बुला रहा था । दोनों मुड़े और वापस मयंक के पास चल दिये । मयंक उन्हें वापस कस्टम कक्ष में ले गया और मधु को कागज वापस देते हुए बोला
” मधु ! तुम शायद अपना सरनेम गलती से पुराना ही लिख गयी । अपने नाम के समाने अपना स्थायी सरनेम लिख दो ।”
” मयंक , मैं अभी तक भी वही सरनेम लिखती हूँ । मैंने अपना सरनेम नही बदला ”
” लेकिन विवाह के बाद हर स्त्री अपने पति के सरनेम लिखती है भारत मे और तुम मधु माथुर नही हो ,मधु सक्सेना हो । ”
मयंक ने आश्चर्य से हिचकिचाते हुए कहा ।
” मयंक ,मैंने विवाह किया है और वह भी बिना किसी शर्त के । अपने पिता की पहचान व नाम मेरी सम्पत्ति है जिसको मैंने अपने पास सहेज कर रखा है । जीते जी तो नही बदलूँगी ” मधु ने दृढ़ता से कहा ।
” लेकिन तुम सक्सेना साहब के बच्चे की माँ हो और वह असीम सक्सेना का बेटा है भीष्म सक्सेना ” मयंक ने तार्किक होते हुए कहा ।
” वह इसलिए मयंक क्योकि मेरे बेटे के पिता सक्सेना है । मेरा पिता माथुर था ,इसलिए मैं मधु माथुर हूं । मैं नाजायज औलाद नही हूँ जो पति का सरनेम लगाऊँ ? हम दोनों के संसर्ग का परिणाम मेरा बेटा है इसलिए उसे उसके बाप का नाम मिल रहा है । ” मधु ने दृढ़ता से कहा ।
” लेकिन मधु ,हमारा समाज पुरूष प्रधान है । इसमें बाप का नाम चलता है ,माँ का नही । ”
मयंक ने पस्त होते हुए कहा ।
” मैं उसे कब स्त्री प्रधान बना रही हूं । हर बच्चा माँ -बाप की परछाई होता है । बेटा बाप का नाम आगे बढाता है ,इसलिए मैं उसे उसके बाप का नाम दे रही हूँ और मरते दम तक मैं भी निभाती रहूंगी अपने पिता का नाम अपने साथ जोड़ कर । तुम्हे कुछ कानूनी आपत्ति है क्या ?”
” नही ऐसा तो कुछ नही ”
मयंक ने खीजते हुए कहा और ऑफिस में खड़ी महिलाओ की तालियों की गड़गड़ाहट से ऑफिस गूंज गया ।
‘” गिव ए हैंड टू दा रिप्रेजेंटेटिव ऑफ दिस वूमेन
वलर्ड ” स्वर के साथ ऑफिस कस माहौल विजयी हो उठा था एयर मयंक के पुरुषत्व पल पल पस्त हो रहा था ।।
सुशीला जोशी
विद्योत्तमा, मुजफ्फरनगर उप्र