लाल मिट्टी | Lal Mitti
ठाकुर श्याम सिंह के पूछने पर कि हरिया तेरे घर में लड़का पैदा हुआ है कि लड़की, तो उसने अपनी छाती खुशी से ठोकते हुए कहा था-“बेटी हुई है लल्ला बेटी, हम बेटा-बेटी में कोई फर्क नहीं मानते और दहेज से भी नहीं कांपते कि कहाँ से लाएंगे देंगे दहेज। और ,,,, और जो दहेज देंगे वो पैसे हम पहले अपनी बेटी को पढ़ाने-लिखाने में लगा देंगे, जिसे हम अपनी बेटी देंगे उसे आँख भी तो होगी कि बेटी वाला अपनी बेटी हमें सुशील और सुयोग्य बना कर दे रहा है। वह घर भर देगी।”
धान की दौनी में सारी बातें चल रही थी। श्याम ठाकुर हरिया के इस हौसले से इतना खुश हुए कि उन्होंने अपने आप को रोक नहीं पाया और प्रभावित होते हुए कहा -“हरिया, हमने तो सुना था कि लोग घर में बेटी आते ही टूट जाते हैं लेकिन मैं तेरे बुलंद इरादे को सलाम करता हूंँ, और तुम्हारी खुशी में तुमसे एक वचन मांगना चाहता हूंँ, क्या दोगे, मुझे? अपने दरवाजे पर आया एक याचक समझ कर।”
“सब कुछ मांगेंगे लेकिन मेरी बेटी मुझसे नहीं मांगेंगे आप, जान लीजिए। वह मेरी जांँघ पवित्र करने आई है, और जांँघ पवित्र कर जिसके घर जाएगी वह घर भी पवित्र करती रहेगी, ताउम्र।” हरिया की दूर-दृष्टि थी यह। जो ठाकुर जैसे आदमी को और अधिक प्रभावित कर गई।
“तेरी बेटी गाँव की बेटी है, मैं अपनी बेटी को कुछ देना चाहूँ तो तुम रोक दोगे, मुझे ?” जैसे ठाकुर ने हरिया के इरादे की क्षेत्र में प्रवेश करने के लिए प्यार से स्वीकृति-पत्र प्रस्तुत कर दिया हो।
“जहांँ गांँव की बेटी की बात आती है वहाँ हरिया क्या एक बहुत बड़ा सम्राट भी झूक जाएगा। क्योंकि सोच के स्तर बदल जाते हैं।” हरिया जैसे बेटी और संस्कृति का पूरा कम ही शब्दों में व्याख्या प्रस्तुत कर दिया और ठाकुर को उसकी सहमति भी मिल गई। इस जमाने में ऐसे आंकड़े देखने को बहुत कम मिलते हैं। जहांँ सद्भावनाएंँ गांँव की बेटी और संस्कृति की छांँव फैलाती नजर आती है।
“आज की दौनी में पड़े इस पूरे पैरे के धान की कीमत बेटी के नाम होगी।” ठाकुर ऐसा कभी नहीं खुले और न ही हृदय की अपनी उदारता दिखाए थे, अपनी जिंदगी में। खलिहान की एक ओर पड़ी खाट पर बैठे हुए उन्होंने बहुत गर्व से यह उद्घोष किया था।
दौनी में लगे सभी कामगार हर्षित हो उठे। सभी को लगा कि ठाकुर आज अपनी हबेली की नहीं बल्कि हमलोगों की झोपड़ी की शोभा बढ़ाने के लिए आतुर हैं। यदि सभी अमीरों की दृष्टि ऐसी हो जाए तो फिर क्या कहना लेकिन होती बहुत कम है।
दरिद्रता के आंँगन में कृपा की धन-वर्षा वह भी बेटी के घर आने की खुशी में यह बहुत बड़ी बात थी। हरिया मुस्काया। क्योंकि ठाकुर की भावना बिल्कुल स्वार्थ विहीन थी। मैदानी हवा एक पिता को राहत महसूस करा गई कि बेटी अपने पिता के सिर की बोझ नहीं होती। जिंदगी में संकल्प से भी खुशी आती है।
पैरे की दौनी करता हुआ ट्रैक्टर का ड्राइवर अपने ट्रैक्टर को एक ओर खड़ा कर दिया। सभी कामगार धान से पुआल अलग करने में लग गए।
“पुआल में धान नहीं जाए रोहन, ठीक से झाड़ना।” इसी बीच कलेसर ने ध्यान दिलाते हुए कहा। क्योंकि रोहन कुछ दूसरे मिजाज का आदमी था। एक बोझ पुआल में आधा किलो धान फेंक देना तो आम बात थी, उसके लिए।
“जाएगा तो क्या हुआ, पुआल काटते समय तो हमारे ही हक में आएगा।” रोहन भुनक गया।
“बेटी के घर बाप तो खाता ही नहीं है, वह धन तेरे हक में कैसे आएगा रे?” रोहन को रीति-रिवाज की बातें याद दिलाते कलेसर ने धमकाते हुए कहा। “कीड़े पड़ जाएंगे देह में, तेरे दोनों हाथ काम नहीं करेंगे, और हाथ की उंगलियाँ गलने लगेंगी, तुम्हारी।
हरामजादा, तूने सुना नहीं कि ठाकुर ने पैरे का पूरा धान हरि भैया की बेटी को दे दिया है। हम सबकी शिकायत कराएगा तुम, कामगार की दुनिया में? आंँय, ठाकुर से हँसी कराएगा, बोल?”
ऐसा सुनकर रोहन का पूरा देह कांपने लगा- “क्या कह गया मैं। नहीं ,,,,,,नहीं गलती से कह दिया मैंने, पुआल में धान फेंकने की बुरी आदत तो पहले से ही जो लगी हुई थी हमारी। उसी के प्रभाव में आ गया था मैं।। वही कह दिया हमने। लगी बुरी आदत कभी भी सुधारी जा सकती है।
लेकिन कामगार ऐसा काम तो अपने अभाव में करता है। फिर क्या कह दिया हमने,,,, अभाव? हाँ, अभाव ही कहा था। यह भी हमारी सोच हमारे मालिक के प्रति विश्वासघात की है, वह हम पर पूरा भरोसा करता है और हम उसका हृदय नहीं जीतते। हरि भैया ने कहाँ कभी ऐसा किया। जैसा कि हमने किया या सोचा भी।”
रोहन आत्म-पश्चात कर ही रहा था कि कलेसर ने भांप लिया कि वह अपनी ग़लती महसूस कर रहा है लेकिन खुल नहीं रहा है, हमसे।
“चल लग जा अपने काम में, सबसे गलती होती रहती है।” कलेसर ने उसे धैर्य बंधाते हुए फिर से बोला। “खुल कर हँस ले, अंदर की जमी सारी काई निकल जाएगी।”
“आपने बंद आँखें खोल दी।”और वह हँस पड़ा। उसकी हँसी में आत्म-पश्चात भी सम्मिलित था।
“क्या हुआ रोहन जो इतना हँस रहे हो, तुम?” हरिया ने सवाल किया।
“आप बाद में जान जाएंगे, हरि भैया।”
“ठीक है।”
उस पैरा का पूरा धान अलग कर दिया गया और दूसरा पैरा पड़ गया। कुछ दिनों बाद हरिया की बेटी के नाम से सारे पैसे फिक्स डिपॉजिट कर दिए गए। गाँव-इलाके में इस सुखद खुशी की खबर आग की तरह फैल गई। ठाकुर ने एक दलित की बेटी के लिए इतना बड़ा संकल्प किया है। जिसे कहा नहीं जा सकता।बदलाव ऐसे ही संभव है।
यह दलित के लिए बैसाखी नहीं दमदार सहयोग है, बेटी के लिए सहयोग। और आह्वान भी यह कि गांँव के और लोग ऐसा करें। सिर पर मिट्टी-कलश लेकर चलने से कहीं अच्छा है यह दायित्व-कलश लेकर चलना। ताकि गरीबी के अखाड़े में जिंदगी पराजित नहीं हो सके।
कुछ वर्षों बाद हरिया की बेटी पल्लवी गाँव के स्कूल में जाने लगी। और धीरे-धीरे वह काफी मेधावी छात्रा के रूप में भी प्रतिष्ठा पाने लगी।
गांँव के स्कूल की शिक्षा व्यवस्था पहले से अच्छी नहीं थी। कुछ लड़के तो कुछ लड़कियांँ भी मनचले निकले हुए थे। स्कूल की शिकायत इलाके में सरेआम होने लगी थी। लेकिन पल्लवी का जाना क्या हुआ की ठाकुर श्याम सिंह की नजर उस स्कूल की ओर रहने लगी।
शिक्षक -शिक्षिका अब सभी अपने-अपने ड्यूटी में रत रहने लगे कि हम यदि लापरवाही बरतते पाए गए तो दंडित कर दिए जाएंगे। ठाकुर कभी लापरवाही सहन नहीं करते हैं। उच्चाधिकरी की चिट्ठी भले बाद में आएगी लेकिन ठाकुर के जूते की आवाज बहुत जल्द आ जाएगी। और गाँव के लोग भी खिलाफ में खड़े हो जाएंगे।
जो बगल गांँव के पहले से कुछ मनचले छात्र थे वे लाख चेतावनी के बावजूद भी शिक्षक की नजरों से अपने आप को छिपाते हुए कुछ-न-कुछ करामात कर ही देते थे। स्कूल की दीवार पर अशोभनीय शब्द लिखने में अपनी काबिलियत समझते थे। उन्हें जरा-सा भी भय नहीं होता था कि इसका अंजाम क्या होगा। एक दिन उनके प्रेम-पत्र ठाकुर के हाथ लग गये।
अब सांच को आंच क्या थी। ठाकुर ने उनके अभिभावकों को खबर भिजवाकर बुलाया और सभा-हॉल में सचेत करते हुए कहा -“आपके बच्चे यदि आपसे नहीं सम्हलते हैं तो हम सम्हाल और सुधार देंगे उन्हें, है मेरे पास उपाय। निपट गवार हैं आप लोग, यदि ऐसे नहीं रहते तो आप लोग अपने बच्चों को सम्हालते, आपके गांँव का एक भी बच्चा आज तक कहीं कुछ कर सका है, है कोई इतिहास?”
“ठाकुर, आप हमरे गांँव के इतिहास की बात छेड़ कर अच्छा नहीं कर रहे हैं।आपका यह अपमान हमारे सहने से बाहर है, जान लीजिए। यह तमाचा हम बर्दाश्त नहीं करने वाले हैं।आप दलितों का पक्ष बराबर लेते हैं।” गुरई सिंह ने बौखलाए हुए स्वर में कहा। वह भी तो ठाकुर की बिरादरी से आता था। बगल के गाँव का रहने से क्या हुआ। मर्द लहरते हैं तो कभी भी और कहीं भी लहर लेते हैं। और उन दोनों के बीच में जो पड़ता है वह निसंदेह पीसा जाता है। जातीय लहर तो और अच्छी नहीं होती।
“लहर गए इतने में, तो आप ही बताइए क्या छेड़ें, हम। आपके गांँव के बच्चे स्कूल की दीवार तथा लड़कियों को छेड़ें और हम ये सब सहते रहें। चुपचाप।” ठाकुर ने गर्म मिजाज से पूछा।
“लहरिए मत गुरई सिंह ठाकुर की बातों का जबाब दीजिए, हम भी ऐसी हरकत के खिलाफ हैं। नहीं जानते हैं तो जान लीजिए। अभी हम बोल रहे। हमारे बाद गाँव के सारे लोग बोलने लगेंगे।
आपका टिकना मुश्किल कर देंगे हम सभी। प्रगति का इतिहास है तो दिखाई। इतिहास स्वतः चमकता है, कब साफ सुथरे चरित्र रहता है तब, ऐसे धुंध में नहीं।” लगा कि ललन राम गुरई सिंह का मुंँह नोच लेगा। इतना तमतमा उठा, वह। और गुरई सिंह बीच में दलित की बात जो घुसा कर आग बो दिया था।
कुछ क्षण के लिए पूरा सन्नाटा छा गया। लोगों की संख्या गुरई सिंह के पक्ष में कम पड़ रही थी इसलिए वह चुप हो गया। यह सोचते हुए कि आज नहीं सही तो कल आग लगा ही देंगे। ले लेंगे हम बदला। छोड़ेंगे नहीं। चाहे जब लें और जैसे लें।
“बोलिए, अब चुप क्यों हैं आप।
नहीं बोल सकते हैं तो मत भेजिए अपने गाँव के बच्चों को इस स्कूल में। यह चरित्र सृजन के लिए स्कूल है स्कूल, कोई प्रेम-नगर नहींं।” गुरई सिंह के गाँव के और लोग भी मौन थे।
ठाकुर की दोनों आँखें गुस्से में चढ़ी हुई थीं। “शर्म नहीं आती। अगले ही साल की बात है न कि इस स्कूल के आगे के तालाब में आपके गाँव के लड़के का ,,,,, वो मिला था ,,,,, वो गिद्ध और कुत्ते नोचे थे, सो अलग। हटाइए उन सभी बातों को। सिर्फ सुधार पर ध्यान दीजिए। क्योंकि अब इस स्कूल में हमारे गाँव की पल्लवी आती है।
एक पल्लवी नहीं हर घर की पल्लवी, हर माँ की पल्लवी, हर पिता की पल्लवी और सबके दामन की पल्लवी। और ,,,, और गाँव के बच्चे भी।” हॉल गूंज उठा ठाकुर की दहाड़ से। सभा समाप्त हो गई।
और सारी बातें अखबार में छप गई। गुरई सिंह को भी नहीं छोड़ा अखबार के रिपोर्टरों ने। अगले दिन अखबार पढ़ते ही सोए हुए उच्चाधिकरी जग गये। जरूरी थी यह मीटिंग। बगल के गाँव वाले अब समझ जाएंगे क्या होता है दायित्व।
भावना तो उनकी यह बनी रहती थी कि हमारे गाँव के लड़के या लड़कियांँ स्कूल जाएंगे तो शादी में कोई व्यवधान नहीं आएगा। आरे भाई, शिक्षा में कोई गुण है तभी तो लोग कामयाबी हासिल करते हैं।
यदि आप ध्यान नहीं देंगे तो आपके बेटे और बेटियाँ बैर की लकड़ी की तरह हो जाएंगे। जिधर से उन्हें पकड़ेंगे आप वे उधर से काँटे की तरह चुभेंगे आपको।
मीटिंग खत्म हो गई। लेकिन खासकर गुरई सिंह की छाती में ठाकुर की बातें चुभ गई। भला एक दलित की बेटी के लिए ठाकुर ने इतना जलील कर दिया, मुझे। किसी हाल में छोड़ूंगा नहीं। देखते हैं क्या कर लेता है ठाकुर और पल्लवी का बाप। हम भी तो ठाकुर से आते हैं। बात यहांँ मूंछ की है, मूंछ की।
गाँव में बीस साल तक पूरी शांति बनी रही। लोगों को लगा कि गाँव और इलाका प्रगति की ओर बढ़ने लगा है। कहीं किसी के साथ कभी कुछ हुआ ही नहीं है। लेकिन प्रतिकार की आग तो शांत राख की ढेर में छिपी हुई थी। राख में छिपी हुई आग बहुत खतरनाक होती है। अनुकूल समय पाते ही वह धधक उठती है। पता नहीं क्या-क्या जला देती है।
हरिया की बेटी पल्लवी आईएएस की परीक्षा में टॉप आई और जिलाधिकारी के लिए चुन ली गई।गाँव में इस खुशी की मिठाइयांँ बांटने की तैयारी चलने रही लगी। लेकिन यह क्या कि दो जगह मिठाइयाँ बांटी जाएगी। एक जगह ठाकुर श्याम सिंह और उनके लोग होंगे और दूसरी ओर गुरई सिंह और उनके आदमी। लोग संशय में पड़े हुए थे।
“भाई हमें दाल में कुछ काला नजर आ रहा है।” कलेसर ने खुलासा करते हुए कहा।
“आप तो हमेशा शक पाले रहते हैं, खुशी की मिठाइयांँ दो खेमे की जगह दस खेमे में बँटे तो क्या हुआ। इसे तो आपको और सौभाग्य समझना चाहिए। और कोई आदमी सब दिन खराब थोड़े रहता है या बुरा सोचता है।
आदमी बदलता है तो उसके विचार भी बदल जाते हैंं। गुरई सिंह हमारे गाँव की खुशी में दूसरी जगह व्यवस्था किए हैं। इसमें नफरत कहाँ दिखाई देती है आपको? हरि भैया की बेटी का भाग्य समझिए जो दो खेमे में खुशी की मिठाइयांँ मिलेंगी, हमें।” रोहन ने अपने दिल की बात कही। रोहन साफ हृदय का आदमी है। गाँव के सभी लोग जानते हैं।
गाँव में चौक एक है लेकिन खेमे दो। परंतु दोनों गाँव की पंचायत एक है। एक तरफ हरिया की बेटी पल्लवी के लिए काफी श्रद्धा थी तो दूसरी ओर बेटी के नाम पर मुखिया बनने के लिए शोहरत बटोरने की साजिश। गुरई सिंह के खेमे के लोग ठाकुर श्याम सिंह के कुछ लोगों के साथ बात-बात में उलझ गए।
हो हल्ला मच गया। नाटकीय रंग ऐसा चढ़ा कि मिठाइयांँ लूटे जाने लगी और इसी हंगामा में कट्टे भी चल गए। गुरई सिंह और उनके सभी आदमी भाग निकले, वहांँ से।
“आह ! मेरी दायीं बाँह चली गई कलेसर भैया। ” रोहन ने कराहते हुए कहा। रोहन की बाँह से निकले लहू से मिट्टी लाल हो गई थी। और रोहन अपनी जिंदगी से हताश होने लगा था।
“धैर्य रख रोहन धैर्य। हरि भैया ने अपनी बेटी पल्लवी को यहाँ की स्थिति से अवगत करा दिया है। और जानते नहीं हो बड़े पदाधिकारी की बातें आजकल पुलिस जल्द सुनती है। पुलिस वाले फौरन आ जाएंगे। हम तुम्हें अस्पताल ले चलेंगे। छोड़ेंगे नहीं ऐसी हालत में।” कलेसर रोहन को सांत्वना दिए जा रहा था।
“कम से कम थोड़ा पानी पिला दे भैया। प्यास से गला सूख रहा है। क्या पता बचेंगे या नहीं, हम।”
“धैर्य रख भाई मेरे, तुझे कुछ नहीं होगा। अस्पताल चलने भर की देर है। ले तब तक थोड़ा पानी से गला तर कर ले।”
“हाँ भैया हाँ, भैया,,,।”
“बोल रोहन बोल,,,,। क्या बोल रहा है मेरे भाई।”
“यह भैया कि गुरई सिंह ने उस साल स्कूल में छिड़े ‘इतिहास की बात’ का बदला ठाकुर श्याम सिंह के गाँव में आज आकर साजिश के तहत ले लिया। हमारे खून से हो गई भैया गाँव की लाल मिट्टी।” रोहन दर्द में कहता रहा।
ठाकुर श्याम सिंह घटना स्थल पर आ गए थे और गुरई सिंह के इस हरकत पर काफी आग बबूला हो रहे थे। बस खुल कर बोल नहीं रहे थे। मौके से हरिया भी पास ही था।
“इससे क्या फर्क पड़ता है रोहन बेटी तो आगे हमारी ही निकलेगी। तुम चिंता मत कर और प्रलाप भी नहीं। क्योंकि हम तेरे साथ हैं।” रोहन दिए हौसले से अभी होश में था।
”देख रोहन ठीक से देख मेरे भाई ठाकुर भी पास तेरे पास खड़े हैं। गुरई सिंह तो इन्हें दलित का ठाकुर तक कहता है। हम अकेले नहीं हैं रोहन।” हरि ने उसे गोद में लिए समझाते हुए कहा।
“हरि भैया,,,,,।”
“हाँ मैं तेरा हरि भैया, बोल रोहन बोल मैं सभी बातें सुन रहा हूंँ, तुम्हारी।”
“कलेसर भैया ने ठीक कहा है भैया कि लाल मिट्टी से भी इस गाँव की बेटी ही आगे निकलेगी। क्योंकि दलित किसी को दर्द नहीं देते। क्या मैंने सच कहा है भैया?”
“हाँ, तूने बिल्कुल सच कहा है दलित किसी को व्यथा नहीं देते।”
पुलिस की गाड़ी आई और रोहन को लेकर अस्पताल चली गई।
विद्या शंकर विद्यार्थी
रामगढ़, झारखण्ड