लव जिहाद के मामले , क्या फैमिली कोर्ट इस तरह की शादियां खत्म कर सकेगी
इन दिनों लव जिहाद का मामला भारत के विभिन्न राज्यों में तूल पकड़ रहा है। कई राज्यों में लव जिहाद के बढ़ते मामले को देखकर इसके लिए कानून बनाने की मांग हो रही है।
कई राज्य तो इसमें आगे बढ़ चुके हैं, विशेषकर के हरियाणा, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में लव जिहाद को लेकर सरकार सख्त हो गई है और कानून बनाने के मसौदे को तैयार करने के लिए एक समिति का गठन किए जाने की बात कही है।
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री आदित्य योगी नाथ ने कहा है कि बहन, बेटियों की इज्जत के साथ खेलने वाले लोगों का अंत किया जाएगा और यह भी कहा कि यदि सिर्फ शादी के लिए धर्म में बदलाव किया जाता है तो इसे स्वीकार नही किया जाएगा न ही इस तरह के कामों को मान्यता दी जाएगी।
हालांकि अब इस पर सियासी बयानबाजी हो रही है। योगी आदित्यनाथ के बयान पर राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने प्रतिक्रिया दी और भारतीय जनता पार्टी को लोगों को बांटने की साजिश करने वाली राजनीति के लिए जिम्मेदार ठहराया।
राजस्थान के सीएम ने ट्वीट करके कहा कि इस तरह के कानून को अदालत मान्यता नही देगी। वहीं कांग्रेस के दिग्गज नेता शशि थरूर ने कहा कि राज्य सरकार को इस तरह प्यार करने वालों के खिलाफ नफरत फैलाने वाली राजनीति नही करनी चाहिए और इस तरह के कानून बनाने से बचना चाहिए।
वही यूपी और हरियाणा में इस तरह की कानून बनाने के लिए प्रस्ताव पारित हो सकते है, जिसमे 5 साल की सजा का प्रावधान भी दिया गया है।
उत्तर प्रदेश, हरियाणा और मध्य प्रदेश जैसे दूसरे भाजपा शासित दूसरे राज्य भी इस तरह आगे बढ़ते देखे जा रहे हैं, इसमें कर्नाटक और असम का नाम भी सामने आ रहा है।
बता दें कि मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने विधानसभा चुनाव के एक दिन पहले ही इसके विषय में कानून बनाने की बात कही थी और कहा था कि सरकार विधानसभा में धर्म स्वतंत्रता विधेयक 2020 लाकर रहेगी और इसे अगले सत्र में पेश किया जाएगा।
यह गैर जमानती धाराओं से युक्त होगा। इसलिए इस कानून के तहत यदि कोई धर्म परिवर्तन कराने और जबरदस्ती शादी करता है तो उन पर कार्यवाही की जाएगी।
इसके अलावा गलत जानकारी देने, बहला-फुसलाकर या धोखे से शादी करने वाले लोगों को भी इस कानून के अंतर्गत लाया जाएगा और उनकी शादी को अमान्य कर दिया जाएगा।
इस तरह होगा कानून :-
लव जिहाद अपराध के तहत पीड़ित व्यक्ति या फिर अभिभावक यदि केस दर्ज करवाते हैं तब इसमें आरोपी व्यक्ति की गिरफ्तारी हो सकेगी और आरोपी व्यक्ति को कोर्ट से जमानत लेनी पड़ेगी, साथ ही इस मामलों में आरोपी के सहयोगी पर भी मुकदमा विभिन्न धाराओं के तहत चलाया जा सकेगा।
अगर कोई अपनी मर्जी से धर्म परिवर्तन करता है तब उसे अपने जिले के कलेक्टर के सामने धर्मपरिवर्तन के संबंध में आवेदन पेश करना होगा।
हालांकि कानून के जानकारों का कहना है कि जब तक पूरा कानून सामने नही आ जाता तब तक इस बारे में बात करना उचित नही है। हालांकि मौजूदा कानून में अगर देखें तो किसी भी शादी को मानने या फिर अमान्य करने का हक सिर्फ फैमिली कोर्ट के पास होता है।
सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील रह चुके एसपी सिंह का कहना है कि इस तरह के कानून उत्तराखंड जैसे राज्यों में पहले से ही मौजूद है, लेकिन राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी के चलते ही इन्हें लागू नही किया जा सका है।
उन्होंने यह भी कहा कि आईपीसी मे इसे लेकर अधिकार दिया गया है। राज्यों को इस विषय पर एक्ट बनाने का अधिकार है। लेकिन उनके ऊपर अदालत में चैलेंज भी आरोपी व्यक्ति कर सकता है।
हालांकि यह राज्यों पर निर्भर करता है कि राज्य एक्ट बनाने मे इसके तहत फैमिली कोर्ट को इसमे शामिल करता है या नही करता है और राज्य फैमिली कोर्ट को कितना अधिकार देते है यह सब कुछ राज्यों पर निर्भर करता है।
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लेखिका : अर्चना