भारत की लचर ज्युडिशियल और पुलिसिंग
भारत की लचर ज्युडिशियल और पुलिसिंग

हमारे देश के ज्युडिशियल और पुलिस व्यवस्था को लेकर हमेशा से सवाल उठते रहे हैं । वजह यह है कि कई बार देखा गया है कि गंभीर से गंभीर आरोप लगने के बाद भी आरोपियों को छोड़ दिया जाता है । चलिए जानते हैं भारत के सिस्टम के उन लूपहोल्स के बारे में जिसकी वजह से आरोपियों को बरी कर दिया जाता है ।

इसके बाद कुछ दिन तो दो सब ठीक रहता है लेकिन उसके बाद फिर से सिस्टम पुराने ढर्रे पर चलने लगता है, इसमें कोई विशेष सुधार नहीं हो पाता है । जैसे कि सब जानते हैं दिल्ली में 1985 में ट्रांजिस्टर बम धमाका हुआ था, जिसमें पुलिस ने 59 लोगों को आरोपी बनाया लेकिन 30 साल के बाद कोर्ट ने उन्हें बरी कर दिया ।

एक गंभीर आरोप है बम धमाका और इस तरह के आरोप के बाद भी इतनी ज्यादा संख्या में लोगों को बरी हो जाने पर लोग सिस्टम पर सवाल उठाते हैं । सवाल यह उठता है कि क्या पुलिस ने जिन लोगों को आरोपी बनाया था उनके खिलाफ पुलिस सबूत इकट्ठा नहीं कर पाई या फिर पुलिस ने अपनी चार्जशीट काफी ज्यादा लंबे समय बाद पेश की या फिर पुलिस द्वारा जो भी सबूत पेश किए गए वे आरोप को सिद्ध करने के लिए काफी नहीं थे जिसकी वजह से इन लोगों को बरी कर दिया गया ?

पुलिस विभाग से ही जुड़े एक अधिकारी का कहना है कि कोई भी केस जब ज्यादा समय तक अदालत में पड़ा रहता है और उसकी सुनवाई नहीं हो पाती है तो वह केस समय के साथ कमजोर हो जाता है । अदालत की तरफ से संबंधित केस के लिए तारीख पर तारीख मिलती जाती है और मामला लंबा खींचा जाता है ।

नतीजा होता है कि उसका सही रिजल्ट नहीं आता है क्योंकि ज्यादा लंबे समय तक मामला खींच जाने की वजह से इस आरोप से जुड़े अधिकारियों का तबादला होता रहता है और कई सारे गवाह मर जाते हैं, सबूत खो जाते हैं । ऐसे में इसका फायदा आरोपियों के मिलता है और उनके ऊपर आरोप सिद्ध नहीं हो पाता है । नतीजा उन्हें अदालत बरी कर देती है ।

मालूम हो कि 10 मई 1985 को दिल्ली के कुछ इलाकों में बम धमाके की घटना हुई थी, इनमें ट्रांजिस्टर लगाए गए थे जिसमें हरियाणा, उत्तर प्रदेश और दिल्ली के 200 से ज्यादा लोग मारे गए थे और बड़ी संख्या में लोग घायल हुए थे, जिसमें पुलिस ने 59 लोगों को आरोपी बनाया था ।

लेकिन 30 लोगों को अदालत द्वारा इसलिए रिहा कर दिया गया क्योंकि जब मामले की जांच की गई तो उसमें दोषपूर्ण, एक तरफा, अनुचित तथा कई प्रकार की खामियां देखने को मिली, जिसके लिए अदालत ने पुलिस को डांट भी लगाई । पुलिस ने जिन 59  लोगों को आरोपी बनाया था वह लोग कभी अदालत में पेश ही नहीं हुए ।

नतीजा यह हुआ कि जुलाई 2006 में आप पर्याप्त सबूतों की वजह से किसी को भेज सजा नहीं मिल पाई क्योंकि जिन लोगों को आरोपी बनाया गया था उसमें 30 लोगों को 1986 में ही जमानत पर रिहा कर दिया गया था । 19 लोगों की मौत मुकदमे की सुनवाई की दौरान हो गई और शेष लोग को भी सबूत के आभाव में रिहा कर दिया गया ।

इसके लिए कोर्ट ने पुलिस को फटकार लगाते हुए कहा कि आपने अपने मनमाफिक बयान बना लिया और किसी को भी उठा लिया । कोर्ट ने कहा कि बम धमाकों के मामले में जो भी जांच की गई उसमें काफी खामियां थी, जिस वजह से कुछ आरोपियों के खिलाफ कार्यवाही एकतरफा और बेवजह थी ।

ऐसे ही जयपुर बम विस्फोट 2008 में जयपुर में सीरियल ब्लास्ट में 4 आरोपियों को दोषी करार देने के साथ एक आरोपी को बरी कर दिया गया था । जयपुर सीरियल ब्लास्ट में 5 लोगों को आरोपी बनाया गया था, जिसमें सरवर आजमी, मोहम्मद सैफ, सैफ उरहमान, सलमान और शाहबाज हुसैन ।

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लेकिन कोर्ट ने चारों आरोपियों को दोषी करार दिया सिवाय शाहबाज हुसैन के । शाहवाज हुसैन को इस मामले से बरी कर दिया गया जबकि शहबाज हुसैन पर आरोप था कि उसी ने विस्फोट के बाद इस विस्फोट की जिम्मेदारी लेने वाला ई-मेल अधिकारियों को भेजा था ।

पुलिस ने 2008 में शाहबाज को लखनऊ से गिरफ्तार किया लेकिन उसके खिलाफ आरोप साबित नहीं हो सके इसलिए उसे दोषमुक्त कर दिया गया । होता यही है कि ज्यादातर मामलों में पुलिस आरोपियों के खिलाफ पर्याप्त सबूत इकट्ठा नहीं कर पाती है और उन्हें अदालत में पेश ना कर पाने की वजह से आरोपियों के खिलाफ आरोप साबित नहीं हो पाता है और नतीजा जज को आरोपियों को रिहा करने का आदेश देना पड़ता है ।

लेखिका : अर्चना

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