लौट आओगे तुम

( Laut aaoge tum )

 

याद है
एक बर्फीली
पहाड़ी शाम
सफेद चादर सी
दूर तक फैली बर्फ
देवदार के वृक्ष
ठंडे ,काँपतें
तुम्हारे हाथों की
वो छूअन मात्र से
पिघलने लगा
मेरा रोम,रोम
आँखों में तेरी
मदहोशी
लवों पर मुस्कान
कानों में गूँजती
वो निश्चल हँसी
खो गये जो पल
सब कुछ वहीं
बस तुम नही
दूर तक फैला
गहरा सन्नाटा
लगता है जैसें
तुम हो यहीं
वादियों में
धुंध के सायें से
निकलकर आओगें
पकड़ कर हाथ
संग अपने
आगोश में
ले जाओंगे
करती हूँ
इंतजार
कभी तो लौटेंगे
लौट आओगे तुम….

 

डॉ रचनासिंह “रश्मि ” ( लखनऊ )
स्वतंत्र स्तंभकार
[email protected]

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