शुक्र है

( Shukar hai ) 

 

बेशक,लगी है आग
कस्बे और मुहल्ले मे
लेकिन,खुदा का शुक्र है
आग हमारे घर से अभी दूर है….

बांध रखे हैं
संविधान के बांध हमने
खड़े कर दिए हैं सैनिकों के जंगल
सुरक्षा कर्मियों की नहरें हैं
आग तो बुझ जायेगी उनसे ही
खुदा का शुक्र है
आग हमारे घर से अभी दूर है…..

उम्मीद है गैर मुल्क भी साथ देंगे हमे
और हम भी तो वंशज हैं परशुराम के
बहुमूल्य मतों से बनाई है सरकार
कुछ की साजिशें भी
क्या उखाड़लेंगी हमारा
खुदा का शुक्र है
आग हमारे घर से अभी दूर है….

हिंसा मे अगर चार मर भी गए
तो सनातन आदिकाल से ही है
जब असुर भी टिक नहीं पाए
तो ये आग भी हमारा क्या बिगाड़ लेगी
खुदा का शुक्र है
आए हमारे घर से अभी दूर है..

 

मोहन तिवारी

( मुंबई )

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