![Har Din Har Din](https://thesahitya.com/wp-content/uploads/2023/08/Har-Din-696x492.jpg)
हर दिन
( Har din )
ज़िन्दगी हर दिन एक नयी चाल है
इंसा दिन-ब-दिन हो रहा बेहाल है।
कोई चराग बन जल रहा हर पल
जाने किसका घर करे उजाल है।
जो खो गया नाकामयाबी में कहीं
देता कहाँ कोई उसकी मिसाल है।
ख्वाहिशों का अपनी बोझ ढोते ढोते
हर दिन वो कितना हो रहा निढाल है।
‘आस’ और ‘काश’ की कश्मकश में
जीना उसके लिए हो रहा मुहाल है।
शैली भागवत ‘आस’
शिक्षाविद, कवयित्री एवं लेखिका
( इंदौर )