
मां का आंचल
( Maa ka aanchal )
खुला आसमान
झलझलाती
दोपहरी धूप
उगल रही थी
आग,
असहज
तिलमिलाती
तापित
तपतपाती भू,
जिस पर
चलना था-
मुस्किल,
सरल था
कहना
कठिन था
चलना
नंगे पांव
भले हो
पेड़ का
छांव,
कोई तो थी
जिसकी आंचल
की छत
की छांव
नीचे परछाईं
पर रखना
पांव
सहज था
सरल था,
न धूप की धाह
न तपन की ताप
होकर निडर
चले जा रहे थे
बढ़े जा रहे थे
दो नन्हीं
बच्चियां
अंगुली के सहारे
बिना थके
बिना हारे
पथ पर
पग पर
हौसले से
इसलिए कि –
साथ में
मां थी
मां का आंचल था।
