मां का आंचल
( Maa ka aanchal )
( 2 )
मां का आंचल हर पल याद आता
मां का आंचल पल पल याद आता
आंचल की ओट में छिपा लेती मां
बचा लेती बुरी नज़र से याद आता
चेहरे के दाग़ नाक स़ाफ़ कर देती
पूंछ लेती आंखों के आंसू याद आता
जब रोता भूख के मारे बिल-बिला
तिल-मिला तोतला झिल-मिला याद आता
आंचल की भीनी भीगी महकी सुगंध सुहानी
नाक की नासा गंध सांसा याद आता
काजल का काला टीका लगाती गाल पर
नज़र नहीं लगे किसी की याद आता
मां का आंचल सहारा सब कुछ ‘कागा’
रंग रंगीला लाल पीला चमकिला याद आता
कवि साहित्यकार: डा. तरूण राय कागा
पूर्व विधायक
( 1 )
खुला आसमान
झलझलाती
दोपहरी धूप
उगल रही थी
आग,
असहज
तिलमिलाती
तापित
तपतपाती भू,
जिस पर
चलना था-
मुस्किल,
सरल था
कहना
कठिन था
चलना
नंगे पांव
भले हो
पेड़ का
छांव,
कोई तो थी
जिसकी आंचल
की छत
की छांव
नीचे परछाईं
पर रखना
पांव
सहज था
सरल था,
न धूप की धाह
न तपन की ताप
होकर निडर
चले जा रहे थे
बढ़े जा रहे थे
दो नन्हीं
बच्चियां
अंगुली के सहारे
बिना थके
बिना हारे
पथ पर
पग पर
हौसले से
इसलिए कि –
साथ में
मां थी
मां का आंचल था।