माॅ का आर्शीवाद

माॅ का आर्शीवाद | डॉ.कौशल किशोर श्रीवास्तव की कलम से

दिन में तीन या चार बार गरमागरम खाने से औलाद का पेट भरने के साथ साथ मां पर यह कर्तव्य भी निर्धारित किया गया है कि वह पुत्र को आर्शीवाद भी दे।

वेदों और पुराणों में माॅ का आर्शीवाद दो तरह का बतलाया गया है। पहला है ”श्रेय” आर्शीवाद जो औलादों को अस्वीकार्य होता है।

श्रेय आर्शीवाद होता है भक्ति की पराकाष्ठा यथा भगवदर्शन या मुक्ति जिससे सब थरथर कांपते है। प्रेय आर्शीवाद स्थूल होता है जो हर पुत्र को प्रिय होता है ।

यह आर्शीवाद वाहनों और भवनों के रूप में होता है। जैसे ट्रकों और कारों के पीछे और बिल्डिगों के सामने लिखा होता माॅ का आर्शीवाद या आई तुझा आर्शीवाद। किसी भी ट्रक के पीछे या बिल्डिंग के सामने बाप को आर्शीवाद लिखा नही मिलता।

जब मेरी साइकिल किसी ट्रक के पीछे चलती है जिस पर मां का आर्शीवद और बुरी नजर वाले तेरा मंुह काला लिखा रहता है तो मुझे वाजिब ही अपनी मां पर शर्म और गुस्सा एक साथ आता है जिसने ट्रको की जगह दूधो नहाओ और पूतो फलों का आर्शीवाद बरसा।

काश उसने औलादों की जगह पर उतने ट्रक या कारें बक्शी होंती। धन्य हैं वे मायें जो औलादों के लिए ट्रक, कारें और बिल्डिंग भी जनती है। मां का आर्शीवाद लड़कियों के लिये नहीं होता अपने धन के लिये ही होता है।

एक दिन मैने पेट का गड्ढा भरते समय अपनी अम्मा से कहा बाई सबकी मांये अपनी औलादों के लिये सब कुछ देती है और एक तू है जो मुझे कुछ नहीं देती ।

आई ने तुर्क व तुर्क जवाब दिया नास पीटे, सब लडके अपनी मां को रिश्वत लाकर देती है एक तू करम जला है तो तनखा से गुजारा करता है ।

माॅ का आर्शीवाद रिश्वत खोंरो और काले धन वालों के लिए होता है । काला धन कमाने वालों को बच्चे पैदा करने की फुरसत ही कहां मिलती है । और ईमानदार लोगों को बच्चे पैदा करने से फुरसत कहां मिलती है।

तो मेरी मां मुझे मांगने पर झिड़की ही देती है, कार ट्रक या बिल्डिगे नहीं। मैं सोचता हॅू कि मेरे बच्चों के पीछे ही मैं माॅं का आर्शीवाद की तख्ती लटका दंॅू पर मेरी बीबी मुझ से और मेरी मां से महाभारत करने लगेगी।

मेरा एक मुंह बोला मित्र है । उसे कजिन दोस्त भी कह सकते है। जब उसे मुझसे काम होता है तो मैं उसका गहरा दोस्त हो जाता हूूॅं ओर जब मुझे उससे काम होता है तो वह मुझसे परिचय मांगता है।

उसके, मेरी नजरो में अनगिनत ट्रक चलते है और उसकी नजरों में कुछ ही ट्रक चलते है। वह माॅ के आर्शीवाद से ही ट्रक खरीदता है और माॅ के आर्शीवाद से ही आय कर की चोरी करता है। उसके एक ट्रक का पीछा करते करते मैं उसकी मां तक पहुंच गया।

अहा, क्या शानदार मां थी उसकी । बिल्कुल फिल्मी या दूरदर्शिनी मां । जैसे सुषमा सेठ या तुलसी ईरानी ही उसकी मां का रोल कर रही हो।

उसने रामू दादा से कहा रामू काका, किचन के लाफ्ट पर जों पांचवा पीपा है उसमें बूंदी के लड्डू और मठरी रखे है। जरा महेश को लाना तो।

कैसा मीठा बोलती है मैने सोचा । लगता है कला और संस्कृति काले धन की ही औलादें है। मुझे तो रामू काका के द्वारा मठरी खिला रही है और अमीरो और अधिकारियों को भुने काजू श्रंगारित वदू के साथ प्रस्तुत करवाये जाते है।

“कैसे आया रे” ? उन्होने प्लांटिंग पेपर चाशनी में लपेट कर पूछा । मैने शिकायत की “मेरी मां” तो मुझे गालियां ही देती है। घर या कार नहीं देती आप ही एकाध ट्रक का आर्शीवाद दे दे” वह बोली बहू तेरा इन्तजार करती होगी।

मेरे घर में एक गाय है मैं सोचता हॅू उसके पीछे ही मां का आर्शीवद की तख्ती लटका दंॅू पर सोचा कि मां का आर्शीवाद मां कैसे हो सकती है । हा एकाध गधा होता है तो मां को चिढ़ाने के लिए उसके पीछे मां का आर्शीवाद जरूर लिखवाता।

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लेखक : : डॉ.कौशल किशोर श्रीवास्तव

171 नोनिया करबल, छिन्दवाड़ा (म.प्र.)

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