माँ का भय

माँ का भय

माँ का भय

मैंने बेटा जना
प्रसव पीड़ा भूल गयी

वह धीरे-धीरे हँसने-रोने लगा
मैंने स्त्री होना बिसरा दिया

उसने तुतली भाषा में माँ कहा
मैं हवा बनकर बहने लगी

वह जवान हुआ
मैं उसके पैरों तले की मिट्टी वारती फिरूँ

उसके सिर सेहरा बंधा
मुझे याद आया
मैं भी एक रोज ब्याहकर आयी थी
इसके पिता संग

कुछ दिनों बाद मैंने जाना
ईश्वर अरूप है
और सारे पौधे
बिन पानी सूख गए हैं

नहीं सोचती कि आसमान से
कोई देवदूत उतरेगा

नहीं आँकना चाहती
जीवन के आँकड़े

मुझे कुछ पतझड़ और देखने हैं
उसके बाद एक अंतहीन बसंत
होगा मेरे चारों ओर

नहीं सोचती
कि मेरे मरने के बाद
बेटा क्या करेगा…..?

वह जानता होगा
हर सुबह
शाम में ढल जायेगी

मैं उस दिन से डरती हूँ
जब मेरा पोता
अपने पिता को छोड़कर दूर जायेगा

और उसे पहली बार अहसास होगा
किसी को अकेला छोड़कर जाने का दुःख
कितना जानलेवा होता है

उस दिन वह रह-रहकर
माँ को ज़रूर याद करेगा ।

जसवीर त्यागी

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