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खुद से पहले देश की सोचो | Desh Prem par Kavita

खुद से पहले देश की सोचो

( Khud se pahle desh ki socho )

 

खुद से पहले देश की सोचो, स्वार्थ को सब त्यागो।
देश प्रेम की बहा दो गंगा, हर भारतवासी जागो।

एकता अनुराग नेह की, बहती चले बहार।
राष्ट्रधारा में महक उठे, अपना सुंदर संसार।

शासन सत्ता कुर्सी को, सुख साधन न मानो।
भारत मां के लाल उठो, हे देश प्रेम दीवानो।

आन बान शान देश की, हम रक्षा की बांधे राखी।
सन्मार्ग परोपकार से, देखो भारत मां की झांकी।

अपनापन अनमोल लुटाओ, सद्भावों की धारा।
महक उठे चमन देश का, लहराए तिरंगा प्यारा।

जयकारे भारत माता के, अधर मधुर मुस्कानें।
गीत वंदे मातरम गूंजे, लब देशप्रेम तराने।

देशभक्ति में झूमे गाए, शिक्षा का दीप जलाकर।
खुशहाली घर घर में लाएं हम ढेरों अन्न उगाकर।

 

कवि : रमाकांत सोनी सुदर्शन

नवलगढ़ जिला झुंझुनू

( राजस्थान )

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