महेन्द्र सिंह प्रखर की कविताएं | Mahendra Singh Prakhar Poetry
पति पत्नी : रोला छन्द
पति पत्नी में आज , कहाँ हैं सुंदर नाता ।
पति भी जग में देख , रह गया बनकर दाता ।।
पूर्ण सभी शृंगार , मात्र वो पति ही करता ।
फिर भी हर शृंगार , दिखावा उसको लगता ।।
पति की खातिर मात्र , एक दिन सजनी सजती ।
करके वह उपवास , जब उपहार है तकती ।।
जब शादी त्यौहार , पति यह व्यस्त हो जाता ।
तब सजनी का रूप , लुभाने वाला आता ।।
उसपे पति का तंज , उसे शोभा क्या देता ।
रहकर वह भी मौन , घूट विष का पी लेता ।।
घर-घर की यह बात , न अपनी आज अकेली ।
बनता आज समाज , इसी की सुनो पहेली ।।
घर-घर होवे क्लेश , इन्हीं बातों को लेकर ।
रिश्ते सारे तोड़ , चली जाये वो पीहर ।।
करें बहाना खूब , मान सम्मान बढ़ाया ।
धोती एक लपेट , जीवन सारा बिताया ।।
उन्हें पति एक आँख , बताओ कब है भाता ।
उनका है अहसान , संग जो जोड़ा नाता ।।
सच्ची बातें आज , प्रखर जब लिखने बैठा ।
कहें सभी फिर लोग, लगा है इसको साठा ।।
रोला छन्द
जीवन के सब काज , कहाँ अब संभव होते ।
फिर जाओ वह भूल , नही हैं ऐसे रोते ।।
हर मानव की चाह , नही होती है पूरी ।
कुछ मानव के संग , रहे वह सदा अधूरी ।।
कंगन चूड़ी हाथ , खनकते सुंदर लगते ।
सदा नकारक शक्ति , इन्हीं से पीछे हटते ।।
माथे बिन्दी रोज , पिया का मन हर लेती ।
चित भी रहे प्रसन्न , हृदय में सुख भर देती ।।
छम-छम की आवाज , पायलों की पथ रोकें ।
ठहरो तुम इस बार , पायलें तुमको टोकें ।।
सरसी छन्द :-
कह कर अन्नदाता हमें तो , छीन लिए अधिकार ।
किसके आगे जाकर रोए , भूखा है परिवार ।।
अन्धे बहरे बनकर बैठे , मेरे ही सरकार ।
चला रहे है देश सुनो वो , मिला हाथ व्यापार ।।
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कुण्डलिया
सर्दी में पीड़ित रहें , देखो सभी किसान ।
लेकिन अपने कर्म का , निशिदिन रखते ध्यान ।।
निशिदिन रखते ध्यान , तभी अच्छी हो फसलें ।
देखे मत दिन रात , कार्य को पहले निकलें ।।
बारिश हो या धूप , ढ़के तन को यह वर्दी ।
रहता अड़िग किसान , पड़े ओला की सर्दी ।।
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रखते व्यापारी सभी , उत्पादन का मूल्य ।
सुनो हमें भी कीजिए , आज उसी के तुल्य ।।
आज उसी के तुल्य , भाव मैं स्वयं लगाऊँ ।
सबके जैसे दाम , दूध के आज बढाऊँ ।।
करके हम उत्पाद ,नहीं फिर मुखड़ा तकते ।
मिलती हमको छूट ,लगा के कर हम रखते ।।
जीवन रूपी रंग मंच को ( गीत )
जीवन रूपी रंगमंच को , देख रहा हूँ आज ।
कब क्या कैसा अभिनय होगा , छुपा अभी है राज ।।
जीवन रूपी रंग मंच को…..
किस किस के साथ चलूँ मैं , किसका छोडूँ साथ ।
कौन यहाँ अपनों सा मिलता , जिसका थामूँ हाथ ।।
समझ न पाया अब तक देखो, कैसा आज समाज ।
जीवन रूपी रंग मंच को ….
स्वार्थ-स्वार्थ ही भरा हृदय में , देखे ऐसे लोग ।
हम अपने है हम अपने है , कहें करें उपयोग ।।
जिसका जितना मान किया था , वही बने अब खाज़ ।
जीवन रूपी रंग मंच को ….
सोचा था मिलकर हम दोनो , नाचें गाये खूब ।
नही खबर थी की इस जग में , जायेंगे हम डूब ।।
अब खोद कुआं पीते पानी , यही बचा है काज ।
जीवन रूपी रंगमंच को ….
जीवन रूपी रंगमंच को , देख रहा हूँ आज ।
कब क्या कैसा अभिनय होगा , छुपा अभी है राज ।।
जीवन की टेढ़ी डगर
जीवन की टेढ़ी डगर , तम ही दिखता छोर ।
हार नहीं मानो अभी , मंजिल है उस ओर ।।
मीलों का करके सफर , दिखा चाँद जब पास
कहता वापस लौट जा , है ये झूठी आस ।।
मातु;पिता को छोड़ जो , गये लोग हरिद्वार ।
खड़े वही झोली लिए , कर दो माँ उपकार ।।
देख-देख माँ भी दुखी , भटक रहा संसार ।
मेरे ही अवतार को , समझ रहा अब नार ।।
भीड़ बहुत है भक्त की , देखो माँ के द्वार ।
चल अपनी ही मातु को , पहनाएं हम हार ।।
प्रेम हृदय में जब जगे, होगा खुश इंसान ।
सुखी रहे संसार यह , माँ का है वरदान ।।
कण-कण माँ का वास है , पर हो तभी सहाय ।
चरण पकड़ उस मातु के , देगी वही उपाय ।।
माँ की जय जयकार से , गूँज रहा संसार ।
माँ मेरी ममता मयी , कर दें भव से पार ।।
माँ ही करती स्वार्थ बिन, सदा तनय से प्यार ।
उसपे ही औलाद यह , जता रही अधिकार ।।
एक हाथ में पुष्प तो , एक हाथ में भाल ।
ऐसी महिसा मर्दनी , बनी दुष्ट की काल ।।
हमारी भोली माई
रोला छन्द
देती दर्शन नित्य , हमारी भोली माई ।
देकर नित आशीष , हमारी करे बडाई ।।
भूल गये क्या आप , बताओ अब वह उँगली ।
जिसे छोड़ कर आज , करे हो उसकी चुगली ।।
नही आपका दोष , आप हो मेरी जननी ।
सब अपना अपराध , और है अपनी करनी ।।
करता हूँ अभिमान , आप से पाकर जीवन ।
शीश झुकाकर नित्य , करूँ मैं माँ का वंदन ।।
माँ अम्बे सा तेज , दिखे अब रूप तुम्हारे ।
तुझे देखने देव, स्वयं हैं धरा पधारे ।।
यही अटल है सत्य , जगत की तुम महतारी ।
हर नारी में मातु , माँ जगदम्बे हमारी ।।
हो भव से वह पार , मिलें जब कृपा तुम्हारी ।
रखो शरण में आप , मुझे अब मातु हमारी ।।
तुम्हें मान कर शक्ति , करूँ निशिदिन मैं पूजा ।
एक मातु बिन आज, न कोई मेरा दूजा ।।
सुन ले ओ नादान , नही सुख पैसा लाता ।
माँ का यह उपकार , नही यूँ भूला जाता ।।
गलती अपनी मान , शरण उनकी लग जाओ ।
नही राग ये आप , हमें अब आप सुनाओ ।।
विद्या धन उपहार
किसके कितने अच्छे कपडे , तब था नही विचार ।
लेने जाते थे गुरुकुल में , विद्या धन उपहार ।।
प्रात: उठकर वंदन करना , कल के थे संस्कार ।
छोटे और बड़ो से मिलता , तब था इतना प्यार ।।
कल की बातें हुई पुरानी , उत्तम आज विचार ।
लेने जाते थे गुरुकुल में , विद्या धन उपहार ।।
मातु-पिता की सेवा करना , काज यही था हाथ ।
सबकी बातों में मत आना , धीरज रखना साथ ।।
गुरु की आज्ञा शिरोधार्य हो , टेड़ा है संसार ।
लेने जाते थे गुरुकुल में , विद्या धन उपहार ।।
अब तो विद्या धन का लगता , देखा है बाज़ार ।
धर्म कर्म की बाते सबको , लगती है बेकार ।।
सीख रही है दुनिया फिर से , करना अब व्यापार ।
लेने जाते थे गुरुकुल में , विद्या धन उपहार ।।
किसके कितने अच्छे कपडे , तब था नही विचार ।
लेने जाते थे गुरुकुल में , विद्या धन उपहार ।।
देखो माँ अब द्वार तुम्हारे ( गीत )
देखो माँ अब द्वार तुम्हारे, आए भक्त हजार ।
करो कृपा अब हे जगदम्बे , सुनकर आज पुकार ।।
दीन-हीन क्यूँ हम हैं बालक , तुझसे करें सवाल ।
क्यों रूठी हो मैय्या मुझसे , पूछे तेरा लाल ।।
शरण लगाकर मैय्या कर लो , थोडा सा मनुहार ।
कृपा करो अब हे जगदम्बे , सुनकर आज पुकार …
तेरे बिन अब कौन यहाँ माँ , पूछे अपना हाल ।
दर्शन देकर दूर करो माँ , सबका आज मलाल ।।
एक तुम्हीं तो करती मैय्या , भक्तों का उद्धार ।
कृपा करो अब हे जगदम्बे, सुनकर आज पुकार।।
मोड़ लिए हैं सब मुख हमसे , नहीं जताए प्यार ।
जिनको अब तक समझ रहा था , मैं अपना परिवार ।।
वह ही छुप-छुपकर है देखा , करते मुझपे वार ।
कृपा करो अब हे जगदम्बे , सुनकर आज पुकार ।।
देखो माँ अब द्वार तुम्हारे, आए भक्त हजार ।
करो कृपा अब हे जगदम्बे , सुनकर आज पुकार ।।
अब मत रूठो मैय्या हमसे
अब मत रूठो मैय्या हमसे , रूठा है संसार ।
हाथ जोड़कर तुम्हें मनाऊँ , कर दो बेड़ा पार ।।
आज तुम्हारे दर पर मैय्या , झुका रहे सब शीश
हाथ उठाकर अपने दे दो , जन-जन को आशीष
दर्शन करके सब पा जाते , मैय्या तेरा प्यार ।
हँसते हँसते सब घर जाए , सुखी रहे परिवार
हाथ जोड़कर तुम्हें मनाऊँ ,कर दो बेड़ा पार ….।
दीन-हीन की सुनो सदा तुम , आता जो भी द्वार ।
आये जब भक्तों पे संकट , देखें तेरा द्वार ।
ऐसी कृपा रहे नित मैय्या , सबको है विश्वास
आकर सब ही द्वार तुम्हारे , पायें नित उपहार
हाथ जोड़कर तुम्हें मनाऊँ , कर दो बेडा पार …
अब ना रूठो मैय्या हमसे , रूठा है संसार ।
हाथ जोड़कर तुम्हें मनाऊँ , कर दो बेड़ा पार ।।
साथी तुमसे मिलकर ( गीत )
साथी तुमसे मिलकर अब तो , मुझको ऐसा लगता है ,
जैसै जन्मों का मैं प्यासा , औ तू सागर लगता है ।।
आज प्रेम की पावन धरती , पर हम दोनो आन मिले ।
मृत आत्माओं को रब से ज्यों, फिर से जीवन दान मिले ।।
कहकर तुमसे मन की बातें ,मन फिर हँसने लगता है ।
साथी तुमसे मिलकर अब तो ,मुझको ऐसा लगता है ।
जैसे जन्मों का मैं प्यासा , औ तू सागर लगता है
सुख दुख के सहभागी बनकर,लेकर अपनी नाँव चलें ।
नही किसी से डर कर जीना,चल-चल अपने गाँव चलें ।।
सुनो गाँव का अब वह दर्पण , राह तुम्हारी तकता है ।
साथी तुमसे मिलकर अब तो ,मुझको ऐसा लगता है ।
जैसे जन्मों का मैं प्यासा , औ तू सागर लगता है ।।
सुंदर-सुंदर फूल खिलेंगे , अपने घर के आँगन में ।
स्वप्नों की बगिया महकेगी , रिमझिम रिझझिम सावन में
खुशियों से आँचल तेरा अब , मुझको भरता लगता है ।
साथी तुमसे मिलकर अब तो ,मुझको ऐसा लगता है ।
जैसे जन्मों का मैं प्यासा , औ तू सागर लगता है
जिन रिश्तों की खातिर हमनें ( गीत )
जिन रिश्तों की खातिर हमने , सारे जग को छोड़ दिया ।
देख रहा हूँ उन रिश्तों ने , राहों में ही छोड़ दिया ।।
जिन रिश्तों की खातिर हमनें …..
आशा थी बलिदान हमारा , होगा झूठा कभी नही ।
देख रहा हूँ उनके दिल में , अंकुर फूटा अभी नही ।।
यही सोचकर हमने उनको , अपना कहना छोड़ दिया ।
जिन रिश्तों की खातिर हमने , दिल को अपने तोड़ दिया
मातु-पिता गुरुवर की बातें , लगती देखो बुरी नही ।
बिन बतलाये राहें उनके , देखो चलना सही नही ।।
आज अगर मन की कह दूँ तो, डरकर चलना छोड दिया ।।
जिन रिश्तों की खातिर हमने , दिल को अपने तोड़ दिया
अपने कर्तव्यों से हटकर , चलना तुम भी कभी नही ।
जिन राहो में फूल बिछे हो , उन्हें छोडना सही नही ।।
जो अपना कह जहर पिलाए , उसको पीना छोड़ दिया ।
जिन रिश्तों की खातिर हमने , दिल को अपने तोड़ दिया
जिन रिश्तों की खातिर हमने , दिल को अपने तोड़ दिया
देख रहा हूँ उन रिश्तों ने , राहों में ही छोड दिया ।।
मातु-पिता
मातु-पिता के रूप में , मिले मुझे भगवान ।
करता जिनकी चाकरी , बनकर मैं संतान ।।
जीवन मेरा धन्य है , स्वप्न सभी साकार ।
जीने का मुझको मिला , एक नया आधार ।।
अब तो आठों याम मैं, करता हूँ गुणगान ।
करता जिनकी चाकरी , बनकर मैं संतान ।।
मन मेरा गद-गद रहे , पाकर ऐसा धाम ।
जहाँ राम मेरे पिता , मातु जानकी नाम ।।
ऐसे चरणों ने मुझे , बना दिया इंसान ।
करता जिनकी चाकरी, बनकर मैं संतान ।।
अब तो जीवन का यही , मेरे है संकल्प ।
जितनी भी सेवा करूँ , लगे मुझे अब अल्प ।।
क्या माँगूं मैं आपसे , क्या दो अब वरदान ।
करता जिनकी चाकरी , बनकर मैं संतान ।।
मातु-पिता के रूप में , मिले मुझे भगवान ।
करता जिनकी चाकरी , बनकर मैं संतान ।।
सुन लो आज पुकार
सुन लो आज पुकार , गजानन तुम्हें पुकारे ।
झूठा यह संसार , खड़े हम आप सहारे ।।
सुन लो आज पुकार …..
दर्शन दो इस बार , शरण हम तेरी आये ।
करो कृपा कुछ आप , धन्य जीवन हो जाये ।।
माया है बेकार , हमें तो दर्शन प्यारे ।
सब तेरी सरकार , तुम्हीं पर तन-मन वारे ।।
सुन लो आज पुकार …..
दो मूषक आदेश , तुम्हें घर लाये मेरे ।
रहते मुझको नित्य , कष्ट के बादल घेरे ।।
हे गौरी के लाल , शिव शंभू के दुलारे ।
इस जग में बस आप , भक्त के कष्ट निवारें ।।
सुन लो आज पुकार …..
यहाँ न चलता साँच , झूठ की दुनियादारी ।
डर लगता है आज , बचा लो लाज हमारी ।।
गौरी तनय गणेश , लाल हम तेरे प्यारे ।
हर विपदा से आप , सदा हैं हमें उबारे ।।
सुन लो आज पुकार ….
सुन लो आज पुकार , गजानन तुम्हें पुकारे ।
झूठा ये संसार , खड़े हम आप सहारे ।।
वह चीख उठी तो देख लिया ( गीत )
वह चीख उठी तो देख लिया , फिर देख उसे मुँह फेर लिया ।
एक-एक कर देखा सबने , फिर देख उसे मुँह फेर लिया ।।
वह चीख उठी तो देख लिया ….
वह अबला थी बेचारी थी , भारत की बेटी प्यारी थी ।
दुर्भाग्य कहूँ क्या मैं उसको , जो किस्मत की वह मारी थी ।।
जिस निर्धन की बेटी को , उस वहशी ने अब घेर लिया ।
वह चीख उठी तो देख लिया ….
इन अय्याशो ने फैशन से , परिधान हमारा बदल दिया ।
संस्कार हमारी थी पूजी , दौलत के बल से लूट लिया ।।
क्यों चुप आज समाज हमारा , क्यों इनको बनने शेर दिया।
वह चीख उठी तो देख लिया …
चुप है सेवक चुप है जनता , क्या मैं इसका मतलब समझूँ ।
आज बचाओ बेटी को तुम ,क्या मैं बस उदबोधन समझूँ ।।
दौलत के आगे शाशन को , उसने तो अपने पैर लिया ।।
वह चीख उठी तो देख लिया ….
न्यायपालिका के हम सुनते , थे कितने ही रखवाले है ।
लेकिन दौलत पर चलने से , अब आए उनमें छाले है ।।
उजले भारत की हमने अब , धुधंली तस्वीर हेर लिया ।
वह चीख उठी तो देख लिया …..
वह चीख उठी तो देख लिया , फिर देख उसे मुँह फेर लिया ।
एक-एक कर देखा सबने , फिर देख उसे मुँह फेर लिया ।।
मिट्टी के घर आज बनाकर ( गीत )
मिट्टी के घर आज बनाकर , आओ खेलें खेल ।
प्रेम और शीतलता देती , लगती कभी न जेल ।।
मिट्टी के घर आज बनाकर …
दीपक रखने का ताखा हो , रखना इतना याद ।
मिट्टी का चूल्हा मत भूलो , क्या खाओगे बाद ।।
सब बातों को रख लो मन में , वरना होगे फेल ।
मिट्टी के घर आज बनाकर …..
बाबू जी के चश्में का तुम ,अब ढूढो फिर स्थान ।
शौचालय जब उधर बनेगा , तो किधर बने स्नान ।।
घर प्यारा सुंदर हो अपना ,लगे नही वह रेल ।
मिट्टी के घर आज बनाकर …..
नही किसी का कोई कमरा , घर सारा है एक ।
मिलकर अब सब साथ रहेंगें , चाहे रहो अनेक ।।
बाद नही कहना फिर हमसे , सुनो रहें हम झेल ।
मिट्टी के घर आज बनाकर ….
यही प्रेम की है परिभाषा , यह है जीवन सार ।
मन के न विपरीत हो देखो , सबके कभी विचार ।।
तभी सभी में बढ़ता है फिर , देख यहाँ पर मेल ।
मिट्टी के घर आज बनाकर …
मिट्टी के घर आज बनाकर , आओ खेलें खेल ।
प्रेम और शीतलता देती , लगती कभी न जेल ।।
पैसा
ऐसा वैसा मत समझ , पैसा मेरा नाम ।
रिश्तों नातों से नही , मेरा कोई काम ।।
मेरा कोई काम , नही है सुन मानव से ।
नही जताऊँ शोक , किसी के मृत जीवन से ।।
आज प्रखर लो जान , नाम है मेरा पैसा ।
फिर मत करना भूल , समझ कर ऐसा वैसा ।।
सबका साथी हूँ नहीं , आदत अपनी खास ।
समझे कीमत जो यहाँ , रहता उसके पास ।।
रहता उसके पास , स्वार्थ बस रिश्ता रखता ।
मीठे उसके बोल , संग जिनके मैं रहता ।।
पैसा मेरा नाम , समय पाकर मैं खिसका ।
तुम रहो सावधान , नही मैं होता सबका ।।
हिंदी हिंदुस्तान की
हिंदी हिंदुस्तान की , सुन लो होती शान ।
इसके देश विदेश में , है लाखो विद्वान ।।१
हिंदी से नित मिल रहा , भारत को सम्मान ।
हिंदी ही पहचान है , करो सदा गुणगान ।।२
हिंदी-हिंदी रट रहे , हिंदी में कुछ खास ।
हिंदी पढ़ ले आप तो , हो जाए विश्वास ।।३
प्रथम बोल नवजात के , माँ से हो शुरुआत ।
हिंदी के यह बोल है , होता सबको ज्ञात ।।४
हिंदी भाषा में भरा , सुनो ज्ञान भण्डार ।
वर्ण-वर्ण पढ़कर कभी , तुम भी करो विचार ।।५
देवनागरी
देवनागरी लिपि का हम सब , करते है सम्मान ।
निज भाषा में लिखा हुआ है , प्यारा हिन्दुस्तान ।।
अपनी तो भाषा है हिंदी , इससे अपनी शान ।
पूर्ण जगत में हो जाती तब , अपनी भी पहचान ।।
छन्द सोरठा रोला दोहा , इसमें बना विधान ।
गाकर करते सखा सभी है , हिंदी का गुणगान ।।
कुण्डलिया और छन्द की तुम , पूछो ही मत बात ।
गाते रहते प्रेमी जन है , सुबह-शाम औ रात ।।
हिंदी से जन्में यहाँ
हिंदी से जन्में यहाँ , सूर और रसखान ।
हिंदी की महिमा सुनो , करते छन्द बखान ।।
हिंदी का चलता रहा , निज भाषा से द्वंद्व ।
जीत नही कोई सका , पढ़कर इनके छन्द ।।
हिंदी से अभिमान है , हिंदी से सम्मान ।
हिंदी से ही देश की , होती नित पहचान ।।
हिंदी के हर वर्ण में , मिले अलोकिक ज्ञान ।
वर्ण-वर्ण कर दे हमें , विद्या में गुणवान ।।
दोहा
हिंदी भाषा का हमें , दोगे कब अधिकार ।
हम भी तो हैं चाहतें , हो इसका विस्तार ।।
जो कहते थे मंच पर , हम हिंदी परिवार ।
अब कहते बच्चे पढ़े , अंग्रेजी अख़बार ।।
गुरुकुल के उस ज्ञान से , विस्तृत थे संस्कार ।
हिंदी का भी मान था , संस्कृति थी आधार ।।
वन टू थ्री अब याद है, भूले दो दो चार ।
बदल रहे दिन-दिन यहाँ , सबके आज विचार ।।
कब हिंदी दुश्मन हुई , और रुका व्यापार ।
तब भी तो देखो चली , सत्ता पक्ष सरकार ।।
हिंदी को दो मान्यता , तब आये आनंद ।
गीत ग़ज़ल दोहा लिखे , लिखें मधुर सब छन्द ।
हिंदी हिंदी कर रहे , हिंदी का गुणगान ।
हिंदी चाहे हिंद से , फिर अपना अभिमान ।।
सुबह-शाम जो पढ़ रहे , थे गीता का सार ।
आज उन्हें अब चाहिए , अंग्रेजी अख़बार ।।
हिंदी नंबर प्लेट पर , कट जाते चालान ।
ऐसे हिंदुस्तान में , हिंदी का गुणगान ।।
शिक्षा
शिक्षा पाना अब नहीं , सुन लो है आसान ।
शिक्षा पाने के लिए , बिकते खेत मकान ।।
बिकते खेत मकान , देख लो जाकर दुनिया ।
शिक्षा है व्यवसाय , बताती घर में मुनिया ।।
देख प्रखर तू आज , अधूरी लगती दीक्षा ।
खोये सब संस्कार , दिलाई ऐसी शिक्षा ।।
प्रेम
प्रेम का अब प्रेम से प्रतिकार होना चाहिए ।
प्रेम का अब तो नहीं व्यापार होना चाहिए ।।
प्रेम का अब प्रेम से …..
प्रेम से आनंद मिलता प्रेम में सुखधाम है ।
प्रेम से इंसान को मिलते यहाँ पर राम हैं ।।
प्रेम ही तो ज़िन्दगी को दे रही हर शाम है ।
याद रख इस राह में उपहार होना चाहिए ।।
प्रेम का अब प्रेम से प्रतिकार होना चाहिए……
प्रेम की बंशी बजाने नाथ आए थे यहाँ ।
प्रेम रस पीकर सुनो कल झूमती मीरा यहाँ ।।
प्रेम में होकर विवश प्रभु खा लिए तो बेर थे ।
प्रेम पावन है यहाँ मत बैर होना चाहिए ।।
प्रेम का अब प्रेम से प्रतिकार होना चाहिए ….
प्रेम में सब कुछ समाहित है सुनों संसार में ।
प्रेम से कर आज हासिल मत बनो हकदार में ।।
प्रेम पाने के लिए तू त्याग सब अधिकार को ।
प्रेम की सीमा नहीं विस्तार होना चाहिए ।
प्रेम का अब प्रेम से प्रतिकार होना चाहिए ….
प्रेम का अब प्रेम से प्रतिकार होना चाहिए ।
प्रेम का अब तो नहीं व्यापार होना चाहिए ।।
प्रभुवर राधेश्याम : रोला छन्द गीत
हरते सबके कष्ट हैं , प्रभुवर राधेश्याम ।
घर-घर सुमिरन हो रहा , राधा कान्हा नाम ।।दो०
आए हैं घनश्याम , संग राधा को लेकर ।
कर लो उन्हें प्रणाम , खड़े है यमुना तटपर ।।
आए हैं घनश्याम ….
बरसेगा अब प्रेम , धरा पर रिमझिम-रिमझिम ।
देख गगन में आज , सितारे करते टिम-टिम ।।
मगन सभी है लोग , खबर कान्हा की पाकर ।
आए तारन हार , खुशी है अब यह घर-घर ।।
आए हैं घनश्याम …..
बरस रहें है मेघ , बोलते देखो दादुर ।
पवन चला है जोर , खुशी से होकर आतुर ।।
सभी जताएं हर्ष , आज देखो जी भरकर ।
कान्हा राधा संग , सभी के रहते घर-घर ।।
आए है घनश्याम ….
मंदिर-मंदिर आज , भीड़ भक्तों की भारी ।
स्वागत में तैयार , जगत की हर नर नारी ।।
मेवा फल औ फूल , सभी लाएं हैं चुनकर ।
अधरो पर मुस्कान , निखर आई है खुलकर ।।
आए हैं घनश्याम…..
हाथ जोड़ सब लोग अब , कर लो इन्हें प्रणाम ।
प्रकट भये घनश्याम फिर , देखो मथुरा धाम ।।दो०
आए हैं घनश्याम , संग राधा को लेकर ।
कर लो उन्हें प्रणाम , खड़े हैं यमुना तट पर ।।
देश प्रेम
आज देश की रक्षा खातिर , हम जवान बन जायेंगे ।
धरती माँ का कर्ज चुकाकर , हम शहीद कहलायेंगे ।।
घुटनों-घुटनों चलना होगा , पथरीली उन राहों पे ।
नहीं सिसकना हमें सँभलना , अब होगा अपनी चाहों पे ।।
माँ की सेवा करने का अब , ये सौभाग्य बनायेंगे ।
धरती माँ का कर्ज चुकाकर , हम शहीद कहलायेंगे ।।
निकलूंगा जब घर से मैं , सेवा में धरती माँ की ।
तनिक नही परवाह करूंगा , सुन लो फिर मैं इस जाँ की ।।
उस माँ की इस माँ की बातें , जन-जन को बतलायेंगे ।
धरती माँ का कर्ज चुकाकर , हम शहीद कहलायेंगे ।।
थर-थर कापेगा दुश्मन भी , जब सरहद पर जायेंगे ।
बनकर लौह पुरुष भारत का , हम तुमको दिखलायेंगे ।।
यही शास्त्री यहीं सुभाष से , कल तुमको मिलवायेंगे ।
धरती माँ का कर्ज चुकाकर , हम शहीद कहलायेंगे ।।
देख नही सकता मैं ऐसे , भारत माँ की बरबादी
कब भूला आजाद भगत को , पाकर हमने आजादी ।
वह तो सिर का ताज हमारे , हम नित शीश झुकायेंगे ।
धरती माँ का कर्ज चुकाकर , हम शहीद कहलायेंगे ।।
हम जवान हैं हम किसान हैं , क्यों पीछे हट जायेंगे ।
लाल कहो तुम भारत माँ का , धूल चटाकर जायेंगे ।।
दुश्मन की छाती पर चढ़कर , आज ध्वजा लहरायेंगे ।
धरती माँ का कर्ज चुकाकर , हम शहीद कहलायेंगे ।।
आज देश की रक्षा खातिर , हम जवान बन जायेंगे ।
धरती माँ का कर्ज चुकाकर , हम शहीद कहलायेंगे ।।
आती होंगी राधिका ( कुण्डलिया )
आती होंगी राधिका , सुनकर वंशी तान ।
मुरलीधर अब छोड़ दो , अधरो की मुस्कान ।।
अधरो की मुस्कान , बढ़ाये शोभा न्यारी ।
मुख मण्ड़ल के आप , नही सोहे लाचारी ।।
कैसे तुमसे दूर , कहीं राधा रह पाती ।
सुन कर वंशी तान , दौड़ वह राधा आती ।।
कौन जगत में इस नारी का
कौन जगत में इस नारी का , बताओ कर्जदार नही है ।
ऐसा व्यक्ति दिखाओ मुझको , जिसपे इसका भार नही है ।।
कौन जगत में इस नारी का….
जिसकी रक्षा की खातिर तो , कितने ही कुरुक्षेत्र बने हैं ।
आज उसी की रक्षा में अब , पुरुष वर्ग असहाय बने हैं ।।
सदा वीर को इस धरती पर , नारी ने ही नित्य जना है ।
आज उसी नारी का शोषण , करना आत्याचार नही है ।।
कौन जगत में इस नारी का ….
उसी कोख से जन्में हो सब , उससे ही बर्बरता करते ।
कैसे क्षमा करेगा ईश्वर , जब ऐसी प्रताड़ना करते ।।
ये भूल नही है हे मानव , तू नारी का संहार किया ।
वह देख रहा है सब बैठा , वहा सुनों अँधकार नही है।।
कौन जगत में इस नारी का…
झूठी लगती तुमको बातें , अब सारे वेद पुराणों की ।
पढ़कर देखो कब क्यों कैसे , हुई वहाँ आहुति प्राणों की ।।
नारी ही है शक्ति सरोवर , पुरुष सिर्फ संचालन करता ।
इससे तू टकरायेगा तो , समझो फिर संसार नही है ।।
कौन जगत में इस नारी का……
कौन जगत में इस नारी का , बताओ कर्जदार नही है ।
ऐसा व्यक्ति दिखाओ मुझको , जिसपे इसका भार नही है ।।
ख़्वाहिश
तुझे ऊँचा अफसर बनाने की ख़्वाहिश है ।
जहाँ तक पढ़े तू पढ़ाने की ख़्वाहिश है ।।१
खिलों फूल सा अब हँसाने की ख़्वाहिश है ।
तुम्हारे लिए चाँद लाने की ख़्वाहिश है ।।२
हटाकर मैं काँटे तेरे रास्ते के
डगर साफ़ सुथरी दिखाने की ख़्वाहिश है ।।३
करो खूब बेटी सदा नाम जग में ।
यही कीर्ति तुमको दिलाने की ख़्वाहिश है ४
महादेव लाए घड़ी वह सुहानी ।
कि डोली तुम्हारी सजाने की ख़्वाहिश है ५
कली बाग की तुम हमारी हो पहली ।
तुम्हें देख कर मुस्कुराने की ख़्वाहिश है ।। ६
खुशी से मनाए प्रखर दिन तुम्हारा ।
खुशी आज पूरी जताने की ख़्वाहिश है ७
बेटी तुमको करना होगा
बेटी तुमको करना होगा , जीवन में संघर्ष ।
तब ही जीवन में आयेगा , सुनो तुम्हारे हर्ष ।।
बेटी तुमको करना होगा…
घात लगाये बैठे हैं सब , रहते अपने पास ।
चलो सँभलकर नित इनसे , करना मत विश्वास ।।
इनसे सूझ-बूझ का अपनी , करना नही विमर्श ।
बेटी तुमको करना होगा …
ले आयेगा हाथी घोड़ा , तुम्हें दिखाने आज ।
छल बल से फिर कृत्य ही करता , ऐसा आज समाज ।।
नहीं दिखायेगा ये तुमको , मार्ग यहाँ उत्कर्ष ।
बेटी तुमको करना होगा…..
हर जीवन में मातु-पिता ही , होते सच्चे मीत ।
तू मत कर शंका प्रीति यही , दिलवाती है जीत ।।
शेष जगत में स्वार्थ भरा है ,नहीं मिलेगा हर्ष ।
बेटी तुमको करना होगा ……
बेटी तुमको करना होगा, जीवन में संघर्ष ।
तब ही जीवन में आयेगा , सुनो तुम्हारे हर्ष ।।
आजादी का दिवस मनाऊँ
आजादी का दिवस मनाऊँ ,
भूखा अपना लाल सुलाऊँ ।
कर्ज बैंक का सर के ऊपर,
खून बेचकर उसे चुकाऊँ ।।
आजादी का दिवस मनाऊँ….
सरकारें करती मनमानी ,
पीने का भी छीने पानी ।
कैसे जीते हैं हम निर्धन ,
कैसे तुमको व्यथा सुनाऊँ ।।
आजादी का दिवस मनाऊँ…
मैं ही आज नहीं हूँ निर्धन ,
आटा दाल न होता ईर्धन ।
जन-जन का मैं हाल सुनाऊँ ,
आओ चल कर तुम्हें दिखाऊँ ।।
आजादी का दिवस मनाऊँ…
शिक्षा भी व्यापार हुई है ,
महँगी सब्जी दाल हुई है
आमद हो गई है आज चव्न्नी,
कैसे घर का खर्च चलाऊँ ।
आजादी का दिवस मनाऊँ…
सभी स्वस्थ सेवाएं महँगी ,
जीवन की घटनाएं महँगी ।
आती मौत न जीवन को,
फंदा अपने गले लगाऊँ ।।
आजादी का दिवस मनाऊँ…
ज्यादा हुआ दूध उत्पादन,
बिन पशु के आ जाता आँगन ।
किसको दर्पण आज दिखाऊँ
दिल कहता शामिल हो जाऊँ ।।
आजादी का दिवस मनाऊँ…..
आजादी का दिवस मनाऊँ ,
भूखा अपना लाल सुलाऊँ ।
महेन्द्र सिंह प्रखर
( बाराबंकी )
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