महेन्द्र सिंह प्रखर की कविताएं | Mahendra Singh Prakhar Poetry
शिक्षा
शिक्षा पाना अब नहीं , सुन लो है आसान ।
शिक्षा पाने के लिए , बिकते खेत मकान ।।
बिकते खेत मकान , देख लो जाकर दुनिया ।
शिक्षा है व्यवसाय , बताती घर में मुनिया ।।
देख प्रखर तू आज , अधूरी लगती दीक्षा ।
खोये सब संस्कार , दिलाई ऐसी शिक्षा ।।
प्रेम
प्रेम का अब प्रेम से प्रतिकार होना चाहिए ।
प्रेम का अब तो नहीं व्यापार होना चाहिए ।।
प्रेम का अब प्रेम से …..
प्रेम से आनंद मिलता प्रेम में सुखधाम है ।
प्रेम से इंसान को मिलते यहाँ पर राम हैं ।।
प्रेम ही तो ज़िन्दगी को दे रही हर शाम है ।
याद रख इस राह में उपहार होना चाहिए ।।
प्रेम का अब प्रेम से प्रतिकार होना चाहिए……
प्रेम की बंशी बजाने नाथ आए थे यहाँ ।
प्रेम रस पीकर सुनो कल झूमती मीरा यहाँ ।।
प्रेम में होकर विवश प्रभु खा लिए तो बेर थे ।
प्रेम पावन है यहाँ मत बैर होना चाहिए ।।
प्रेम का अब प्रेम से प्रतिकार होना चाहिए ….
प्रेम में सब कुछ समाहित है सुनों संसार में ।
प्रेम से कर आज हासिल मत बनो हकदार में ।।
प्रेम पाने के लिए तू त्याग सब अधिकार को ।
प्रेम की सीमा नहीं विस्तार होना चाहिए ।
प्रेम का अब प्रेम से प्रतिकार होना चाहिए ….
प्रेम का अब प्रेम से प्रतिकार होना चाहिए ।
प्रेम का अब तो नहीं व्यापार होना चाहिए ।।
प्रभुवर राधेश्याम : रोला छन्द गीत
हरते सबके कष्ट हैं , प्रभुवर राधेश्याम ।
घर-घर सुमिरन हो रहा , राधा कान्हा नाम ।।दो०
आए हैं घनश्याम , संग राधा को लेकर ।
कर लो उन्हें प्रणाम , खड़े है यमुना तटपर ।।
आए हैं घनश्याम ….
बरसेगा अब प्रेम , धरा पर रिमझिम-रिमझिम ।
देख गगन में आज , सितारे करते टिम-टिम ।।
मगन सभी है लोग , खबर कान्हा की पाकर ।
आए तारन हार , खुशी है अब यह घर-घर ।।
आए हैं घनश्याम …..
बरस रहें है मेघ , बोलते देखो दादुर ।
पवन चला है जोर , खुशी से होकर आतुर ।।
सभी जताएं हर्ष , आज देखो जी भरकर ।
कान्हा राधा संग , सभी के रहते घर-घर ।।
आए है घनश्याम ….
मंदिर-मंदिर आज , भीड़ भक्तों की भारी ।
स्वागत में तैयार , जगत की हर नर नारी ।।
मेवा फल औ फूल , सभी लाएं हैं चुनकर ।
अधरो पर मुस्कान , निखर आई है खुलकर ।।
आए हैं घनश्याम…..
हाथ जोड़ सब लोग अब , कर लो इन्हें प्रणाम ।
प्रकट भये घनश्याम फिर , देखो मथुरा धाम ।।दो०
आए हैं घनश्याम , संग राधा को लेकर ।
कर लो उन्हें प्रणाम , खड़े हैं यमुना तट पर ।।
देश प्रेम
आज देश की रक्षा खातिर , हम जवान बन जायेंगे ।
धरती माँ का कर्ज चुकाकर , हम शहीद कहलायेंगे ।।
घुटनों-घुटनों चलना होगा , पथरीली उन राहों पे ।
नहीं सिसकना हमें सँभलना , अब होगा अपनी चाहों पे ।।
माँ की सेवा करने का अब , ये सौभाग्य बनायेंगे ।
धरती माँ का कर्ज चुकाकर , हम शहीद कहलायेंगे ।।
निकलूंगा जब घर से मैं , सेवा में धरती माँ की ।
तनिक नही परवाह करूंगा , सुन लो फिर मैं इस जाँ की ।।
उस माँ की इस माँ की बातें , जन-जन को बतलायेंगे ।
धरती माँ का कर्ज चुकाकर , हम शहीद कहलायेंगे ।।
थर-थर कापेगा दुश्मन भी , जब सरहद पर जायेंगे ।
बनकर लौह पुरुष भारत का , हम तुमको दिखलायेंगे ।।
यही शास्त्री यहीं सुभाष से , कल तुमको मिलवायेंगे ।
धरती माँ का कर्ज चुकाकर , हम शहीद कहलायेंगे ।।
देख नही सकता मैं ऐसे , भारत माँ की बरबादी
कब भूला आजाद भगत को , पाकर हमने आजादी ।
वह तो सिर का ताज हमारे , हम नित शीश झुकायेंगे ।
धरती माँ का कर्ज चुकाकर , हम शहीद कहलायेंगे ।।
हम जवान हैं हम किसान हैं , क्यों पीछे हट जायेंगे ।
लाल कहो तुम भारत माँ का , धूल चटाकर जायेंगे ।।
दुश्मन की छाती पर चढ़कर , आज ध्वजा लहरायेंगे ।
धरती माँ का कर्ज चुकाकर , हम शहीद कहलायेंगे ।।
आज देश की रक्षा खातिर , हम जवान बन जायेंगे ।
धरती माँ का कर्ज चुकाकर , हम शहीद कहलायेंगे ।।
आती होंगी राधिका ( कुण्डलिया )
आती होंगी राधिका , सुनकर वंशी तान ।
मुरलीधर अब छोड़ दो , अधरो की मुस्कान ।।
अधरो की मुस्कान , बढ़ाये शोभा न्यारी ।
मुख मण्ड़ल के आप , नही सोहे लाचारी ।।
कैसे तुमसे दूर , कहीं राधा रह पाती ।
सुन कर वंशी तान , दौड़ वह राधा आती ।।
कौन जगत में इस नारी का
कौन जगत में इस नारी का , बताओ कर्जदार नही है ।
ऐसा व्यक्ति दिखाओ मुझको , जिसपे इसका भार नही है ।।
कौन जगत में इस नारी का….
जिसकी रक्षा की खातिर तो , कितने ही कुरुक्षेत्र बने हैं ।
आज उसी की रक्षा में अब , पुरुष वर्ग असहाय बने हैं ।।
सदा वीर को इस धरती पर , नारी ने ही नित्य जना है ।
आज उसी नारी का शोषण , करना आत्याचार नही है ।।
कौन जगत में इस नारी का ….
उसी कोख से जन्में हो सब , उससे ही बर्बरता करते ।
कैसे क्षमा करेगा ईश्वर , जब ऐसी प्रताड़ना करते ।।
ये भूल नही है हे मानव , तू नारी का संहार किया ।
वह देख रहा है सब बैठा , वहा सुनों अँधकार नही है।।
कौन जगत में इस नारी का…
झूठी लगती तुमको बातें , अब सारे वेद पुराणों की ।
पढ़कर देखो कब क्यों कैसे , हुई वहाँ आहुति प्राणों की ।।
नारी ही है शक्ति सरोवर , पुरुष सिर्फ संचालन करता ।
इससे तू टकरायेगा तो , समझो फिर संसार नही है ।।
कौन जगत में इस नारी का……
कौन जगत में इस नारी का , बताओ कर्जदार नही है ।
ऐसा व्यक्ति दिखाओ मुझको , जिसपे इसका भार नही है ।।
ख़्वाहिश
तुझे ऊँचा अफसर बनाने की ख़्वाहिश है ।
जहाँ तक पढ़े तू पढ़ाने की ख़्वाहिश है ।।१
खिलों फूल सा अब हँसाने की ख़्वाहिश है ।
तुम्हारे लिए चाँद लाने की ख़्वाहिश है ।।२
हटाकर मैं काँटे तेरे रास्ते के
डगर साफ़ सुथरी दिखाने की ख़्वाहिश है ।।३
करो खूब बेटी सदा नाम जग में ।
यही कीर्ति तुमको दिलाने की ख़्वाहिश है ४
महादेव लाए घड़ी वह सुहानी ।
कि डोली तुम्हारी सजाने की ख़्वाहिश है ५
कली बाग की तुम हमारी हो पहली ।
तुम्हें देख कर मुस्कुराने की ख़्वाहिश है ।। ६
खुशी से मनाए प्रखर दिन तुम्हारा ।
खुशी आज पूरी जताने की ख़्वाहिश है ७
बेटी तुमको करना होगा
बेटी तुमको करना होगा , जीवन में संघर्ष ।
तब ही जीवन में आयेगा , सुनो तुम्हारे हर्ष ।।
बेटी तुमको करना होगा…
घात लगाये बैठे हैं सब , रहते अपने पास ।
चलो सँभलकर नित इनसे , करना मत विश्वास ।।
इनसे सूझ-बूझ का अपनी , करना नही विमर्श ।
बेटी तुमको करना होगा …
ले आयेगा हाथी घोड़ा , तुम्हें दिखाने आज ।
छल बल से फिर कृत्य ही करता , ऐसा आज समाज ।।
नहीं दिखायेगा ये तुमको , मार्ग यहाँ उत्कर्ष ।
बेटी तुमको करना होगा…..
हर जीवन में मातु-पिता ही , होते सच्चे मीत ।
तू मत कर शंका प्रीति यही , दिलवाती है जीत ।।
शेष जगत में स्वार्थ भरा है ,नहीं मिलेगा हर्ष ।
बेटी तुमको करना होगा ……
बेटी तुमको करना होगा, जीवन में संघर्ष ।
तब ही जीवन में आयेगा , सुनो तुम्हारे हर्ष ।।
आजादी का दिवस मनाऊँ
आजादी का दिवस मनाऊँ ,
भूखा अपना लाल सुलाऊँ ।
कर्ज बैंक का सर के ऊपर,
खून बेचकर उसे चुकाऊँ ।।
आजादी का दिवस मनाऊँ….
सरकारें करती मनमानी ,
पीने का भी छीने पानी ।
कैसे जीते हैं हम निर्धन ,
कैसे तुमको व्यथा सुनाऊँ ।।
आजादी का दिवस मनाऊँ…
मैं ही आज नहीं हूँ निर्धन ,
आटा दाल न होता ईर्धन ।
जन-जन का मैं हाल सुनाऊँ ,
आओ चल कर तुम्हें दिखाऊँ ।।
आजादी का दिवस मनाऊँ…
शिक्षा भी व्यापार हुई है ,
महँगी सब्जी दाल हुई है
आमद हो गई है आज चव्न्नी,
कैसे घर का खर्च चलाऊँ ।
आजादी का दिवस मनाऊँ…
सभी स्वस्थ सेवाएं महँगी ,
जीवन की घटनाएं महँगी ।
आती मौत न जीवन को,
फंदा अपने गले लगाऊँ ।।
आजादी का दिवस मनाऊँ…
ज्यादा हुआ दूध उत्पादन,
बिन पशु के आ जाता आँगन ।
किसको दर्पण आज दिखाऊँ
दिल कहता शामिल हो जाऊँ ।।
आजादी का दिवस मनाऊँ…..
आजादी का दिवस मनाऊँ ,
भूखा अपना लाल सुलाऊँ ।
महेन्द्र सिंह प्रखर
( बाराबंकी )
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