मैं कलम हूॅ॑
मैं कलम हूॅ॑
कलम बड़ी अनमोल है,जाने चतुर सुजान।
दया धरम अरु शील का,,करती बहुत बखान।।
कलम लेख की शान है,लिखती है भरपूर।
लिखे आत्म का ज्ञान ये, दृष्टि रखती सुदूर।।
चलती जब है यह कलम,लिखे सदा गुणगान।
कहती सब है सच सदा, होती कलम महान।।
तीन अक्षर का नाम है,करती बहुत कमाल।
हाथ पड़ी जब योग्यता,चमका उनका भाल।।
जब गंभीर हुई सदा,लिखती मन का हाल।
कभी खुशी अरु दुख लिखे,जीवन बदले चाल।।
कागज़ कलम दवात का,जनम -जनम का साथ।
रहते तीनों साथ में,छोड़े कभी न हाथ।।
धर्म-कर्म की बात लिख, लिखूं हृदय अरदास।
गान पुरातन मैं लिखूं,लिखती हूं इतिहास।।
मुझको पाके धन्य हुआ,यह सारा संसार।
कविता कहानी अरु कथा, बनी जगत आधार।।
कहती मन की बात है,बोय ज्ञान का बीज।
अंतर मन के भाव की,देती बगिया सींच।।
कलम सदा चलती रहे, गणपति लिखे विधान।
कृपा सदा हो शारदा, विद्या का दो दान।।

कवयित्री: दीपिका दीप रुखमांगद
जिला बैतूल
( मध्यप्रदेश )
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