मैं नहीं हम की बात | Kavita
मैं नहीं हम की बात
( Main Nahi Hum Ki Baat )
करें बंद अब,धरम की बातें।
गंगा और जमजम की बातें।
चोटिल हैं ज़ज्बात अभी बस,
करें फकत मरहम की बातें।
भूख प्यास विश्वास की बातें,
बोझिल हर इक,साँस की बातें।
मिलजुलके सुलाझायें मसले,
करें ताल कदम की बातें।
मेलजोल के दम की बातें।
बन्द हो अब धरम की बातें।
करें वतन की शान की बातें,
सर्वहित सम्मान की बातें।
मानवता का गान जो गाये,
करें उसी सरगम की बातें।
मैं से हो अब हम की बातें।
बन्द हो अब धरम की बातें।
कवि : बिनोद बेगाना