मै शिक्षक हूं | Main Shikshak Hoon
मै शिक्षक हूं
( Main Shikshak Hoon )
शिक्षक बनके एक सुसंस्कृत समाज बनाना चाहती हूं मैं
ज्ञान की पूंजी देकर योग्य मानव बनाना चाहती हूं मैं
समाज में आत्मविश्वास का दीप जलाकर मुश्किलों से लड़ना सिखाती हूं मैं
मन क्रम वचन से बाती बन खुद जलकर ज्ञान का प्रकाश फैलाना चाहती हूं मैं
कोरे कागजों पर लिखकर उन्हें किताब बनाना चाहती हूं मैं
अ’ से अनपढ़ से शुरू होकर ज्ञ’ से ज्ञानी बनाना चाहती हूं मैं
शिक्षक हूं हर विद्यार्थी को पढ़ाकर काबिल बनाना चाहती हूं मैं
शिक्षा के नित नए प्रयोग से चंद्रमा तक जाने की पहली सीढ़ी बनाना चाहती हूं मैं
सपना देखने और उन्हें पूरा करने का मार्ग बताना चाहती हूं मैं
कच्ची मिट्टी से पक्का समाज गढ़ना चाहती हूं मैं
डूबती कश्तीयों सा समाज को किनारे लगाना चाहती हूं मैं
चुपचाप शिकायतें सुनती हूं तब दुनिया बदलने की आवाज बनना चाहती हूं मैं
हर परिस्थिति में खुश रहना हर चुनौती को स्वीकार करना सिखाती हूं मैं
चमन के फूलों से ऐसा बागबान बनाना है उससे सारा जहां महकाना चाहती हूं मैं
शिक्षा देने आदर्श बनना इसलिए त्याग देती हूं हर इच्छाएं मगर कभी नहीं जताती हूं मैं
जब-जब धरा पर जन्म लूं शिक्षक बनना चाहती हूं मैं
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गुरु को समर्पित
गुरु की गोद में ही उत्थान पलता है।
यह जहान सारा गुरु से ही चलता है।
गुरु का बोया पेड़ बनता है।
हजारों बीज उसी पेड़ से जन्म लेता है।
काल की गति को गुरु ही मोड़ सकता है।
गुरु धरा से अंबर को जोड़ सकता हैं।
गुरु की महिमा महान होती है।
गुरु बिन अधूरी वसुंधरा होती है।
याद रहे चाणक्य ने इतिहास बना डाला था।
क्रूर मगध राजा को मिट्टी में मिला डाला था।
शिष्य बालक चंद्रगुप्त को चक्रवर्ती सम्राट
बनाया था।
एक गुरु का लोहा मनवाया था।
सांदीपनी जैसे गुरु सदियों में होते आए हैं।
श्रीकृष्ण जैसे नन्हे नन्हे बीज बोते आए हैं।
गुरु से ही अर्जुन और युधिष्ठिर जैसे नाम है।
गुरु की निंदा व अपमान करने से ही दुर्योधन कंस बदनाम है।
गुरु की दया दृष्टि से बालक श्रीराम बन जाते हैं।
गुरु के आज्ञा ना मानने से रावण भी बन जाते हैं।
हम सभी ने गुरु बनने का सुअवसर पाया है।
बहुत बड़ी जिम्मेदारी को हमने गले लगाया है।
आओ हम संकल्प करें कि अपना फर्ज ईमानदारी से निभाएंगे।
हमारे भारत देश को हम जगतगुरु बनाएंगे।
लता सेन
इंदौर ( मध्य प्रदेश )