मन की दीवार

( Man ki deewar )

 

मर सी जाती हैं भावनाएं
दिन रात की नित तकरार से
हो जाता है खत्म सा सफर
शुरू करते हैं जिसे प्यार से

कभी शक की खड़ी दीवार
कभी बदलते विचारों की भिन्नता
कभी किसी का बढ़ता प्रभाव
उपजा ही देते हैं मन में खिन्नता

कभी रुपयों की खींचा तानी
कभी बच्चों की हो रही मनमानी
कभी बोझ जिम्मेदारियों के
हिल जाती है नींव दरार से

रहती है कसक फिर भी प्यार की
बदलता रूप भी चाहता है निखरना
टीस तो उठती ही है लगाव की
जीता है पति मानो जिंदगी उधार से

मर सी जाती हैं भावनाएं
करते हैं शुरू जिसे प्यार से

मोहन तिवारी

( मुंबई )

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