मन मंदिर का दिव्य महल !
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मन मंदिर को अपने
सुंदर सपनों से सजाओ
प्यार लुटाओ इस पर अपना
सुंदर महल बनाओ ।
इस महल में ना कोई हो
राजा या रंक
ना कोई किसी को मारे
ज़हरीले डंक।
सभी आदम की संतान को
मिले समुचित सम्मान
अभिवंचित थे जो अबतक
मिले उनको अतिशय मान।
ऐसा अद्भुत सहकार हो
ना तेरी जीत ना मेरी हार हो
ऐसा सबका व्यवहार हो।
बोल हों मीठे ऐसे,
जैसे मधुरस की मिठास
सबके चेहरे पर दिखे
उल्लास ही उल्लास।
घुलें मिलें सभी आपस में-
नित्य करें मिल क्रीड़ा,
थोड़ी हो किसी को पीड़ा;
बांट लें सभी मिलकर-
पीड़ा हो जाए जीरा ।
छोड़ें ना किसी हालत में-
किसी को भी अकेला,
महल ऐसा अद्भुत बने,
दिखे अलबेला।
देख दुनिया मुस्कुराए,
ऐसा ही बनने की लालसा,
सबमें जग जाए;
तो यह धरा-
स्वर्ग ही बन जाए।
लेखक-मो.मंजूर आलम उर्फ नवाब मंजूर
सलेमपुर, छपरा, बिहार ।