ग़म से कभी मैं यूं ही, परेशान नहीं होता 
ग़म से कभी मैं यूं ही, परेशान नहीं होता 

ग़म से कभी मैं यूं ही, परेशान नहीं होता 

( Gam se kabhi main yun hi, pareshan nahi hota )

 

 

दिल जो कि ख़ुशी से मेरा, वीरान नहीं होता,

ग़म से कभी मैं यूं ही, परेशान नहीं होता

 

इबादत अगर जो करते, तुम सब ही ए लोगों,

नाराज़ फिर सभी से वो, भगवान नहीं होता ।

 

कि लोग बस्ती में भूखे, मर जाते  यहां यारों,

खाने को गर रोटी औ” सामान नहीं होता ।

 

बेअदबी यदि मेरे साथ होती ना उल्फ़त में,

कि दिल में नफ़रत का उठा, तूफान नहीं होता ।

 

वरना मिटा देता मैं वो, आज सभी दुश्मन ही,

यदि रोकने का मिला अब, फ़रमान नहीं होता ।

 

इक़रार-,ए-मुहब्बत मत करना, किसी से कभी,

उल्फ़त का सफ़र इतना तो, आसान नहीं होता ।

 

सब लोग रहें मिलकर आज़म, मुहब्बत से यारों,

इंसान का रकीब कभी भी इंसान नहीं होता ।

 

 

✒️

 

 

शायर: आज़म नैय्यर

( सहारनपुर )

 

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