
नारी: एक अनोखी पहचान
( Nari : Ek anokhi pahchan )
अंधकार भरी जिंदगी हैं
कब तक दिये की रोशनी काम आएगी।
दुसरो की पहचान पर जी रही,
क्या कभी तेरी अलग पहचान बना पाएगी।
घर के काम और रसोई
ऐसे ही तेरे हाथों चलती जाएगी।
कब तक नकाब के पीछे
तेरी तकलीफे और दर्द छुपाएगी।
जरा नकाब हटा के तो देख
शायद तकलीफे कम हो जाएगी।
माना की तेरे ऊपर मुश्किलो के बादल मंडरा रहे हैं
कब तक यूह तु गिरि रहे जाएगी।
तेरे अंदर एक अनोखा जज़्बा हैं
क्या तु छुपा पाएगी।
दुसरो के दिए वजूद को
कब तक अपनाएगी।
तेरी गगन छूने की ख्वाहिशें
मिट्टी में मिलतीं जाएगी ।
ताने बहुत सुनने को मिलेंगे डरना मत,
एक दिन तु कामीयाब हो जाएगी।
तेरी हिम्मत और महेनत के सामने
कुछ कठिनाइयाँ आएगी।
यह अंधेरे की दुनिया कब तक
औरत नाम के दिये बुझाएंगी
❣️
लेखक : दिनेश कुमावत
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