मन वृंदावन हो जाए
( Man vrindavan ho jaye )
जब जब बजे बांसुरी मोहन, मन वृंदावन हो जाए।
मुरली की धुन पर कान्हा, झूम झूमकर मन गाए।
मन वृंदावन हो जाए
अधर मुरलिया मुरलीधर, मनमोहन मन को मोहे।
सांवरी सूरत तेरी सांवरिया, पीतांबर तन पर सोहे।
राधा संग श्याम पधारे, मधुबन महक महक जाए।
केशव माधव बांसुरी धुन, चंचल चितवन मन भाए।
मन वृंदावन हो जाए
वासुदेव वेणु धुन प्यारी, मोर मुकुट जाऊं बलिहारी।
मदन मोहन सुदर्शन धारी, गिरधर नागर हे बनवारी।
श्याम सुंदर बंसी जब बाजे, दुनिया दीवानी हो जाए।
द्वारिका का नाथ सांवरिया, गोविंद गोविंद जन गाए।
मन वृंदावन हो जाए
परम पुरुष परमात्मा प्रभु, मधुसूदन हे मदन गोपाल।
बांसुरिया तेरी बजे सांवरिया, भक्तों के हो प्रतिपाल।
जादू भरी बांसुरी सांवरा, जब राधा दौड़ी दौड़ी आए।
ग्वाल बाल सब झूम के नाचे, गोकुल में उत्सव छाए।
मन वृंदावन हो जाए
कवि : रमाकांत सोनी
नवलगढ़ जिला झुंझुनू
( राजस्थान )