मानव अधिकार
मानव अधिकार
स्वतंत्रता,समता अनेकों अधिकार मिला,
मानव को न मानव अधिकार मिला,
घर में मतभेद बच्चों -बूढो में
रिश्ते नातों से बस घाव मिला,
कौन लड़ें ,किससे कहें दिल कि बातें
अपनो से न अब वो भाव मिला,
किस अधिकारों के लिए लड़ें
जब कहने, सुनने तक का न अधिकार मिला,
घर से हो रही राजनीति देश तक जा मिला,
हर परिवार को निगलने वाला एक आस्तीन का सांप मिला,
मानव अधिकार कि क्या बात करें?
कोख में पल रहे बच्चों तक को न इंसाफ मिला,
बुजुर्गों को न अपना घर – बार मिला
नव युवकों कि क्या बात करें
जवानी के बाद भी न उनको रोजगार मिला ,
तड़प रही उन स्त्रियों को अभी तक न सम्मान मिला,
प्रतिष्ठित हर नारी को सीता जैसा वनवास मिला,
अधिकारों कि इस होड़ में
अधिकारों को ही न इंसाफ मिला |

कवयित्री : ज्योति राघव सिंह
वाराणसी (काशी) उत्तर प्रदेश, भारत
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