बोलो अब किस डगर चले

( Bolo ab kis dagar chale ) 

 

इधर चले या उधर चले, बोलो अब किस डगर चले।
कहो किधर रस्ता मंजिलें, कहो कारवां किधर चले।

चुनावी मौसम अब आया, रंग बदलता हर साया है।
वादों की भरमार हो रही, धुंआ धुंआ जग छाया है।

प्रेम सुधा रसधार लिए, बोलो अब किस डगर चले।
कलम की पैनी धार लिए, शांतिदूत बन अगर चले।

भागदौड़ होड़ लगी है, बदलावों की हवा चली है।
कहीं-कहीं पे दीप जले हैं, कहीं हुई जेबें खाली है।

स्वर्ण शिखर को छूने वालों, बोलो किस नगर चले।
दो दिन की जिंदगानी प्यारे, प्यार लुटाते अगर चलें।

 

कवि : रमाकांत सोनी सुदर्शन

नवलगढ़ जिला झुंझुनू

( राजस्थान )

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