मानवता का कर्तव्य निभाता हूँ!
मानवता का कर्तव्य निभाता हूँ!
सारा जगत अपना ही परिवार है।
फिर क्यों जगत को बँटा पाता हूँ।
मुझको हर एक प्राणी से प्यार है।
प्रभु की हर संतान को हृदय से लगाता हूँ।
मैं सदा भूखे को खाना खिलाता हूँ।
प्यासों को सदैव, पानी पिलाता हूँ।
सेवा ही जीवन, इसी में आनंद है।
बस! मानवता का, कर्तव्य निभाता हूँ।
हर प्राणी से आत्मीय रिश्ता निभाता हूँ।
जगत की सुन्दरता को बढ़ाता हूँ!
सब हृदय से बैर-ईर्ष्या-द्वेष मिटाएँ।
सबसे प्रेम करो,बस यही सिखाता हूँ।
आजकल मर गई हैं सब संवेदनाएँ।
इन्सानियत! ख़ातिर कोई तो हाथ बढ़ाएँ।
नित भला करने की सबमें भावना हो!
दिलों से बैर मिटाकर, बस!प्रेम बसाता हूँ।
बस बात यही सबको समझाता हूँ।
मैं तो इन्सानियत का पाठ पढ़ाता हूँ।
मुझको हर एक प्राणी से प्यार है।
इसलिए सबसे मेलजोल बढ़ाता हूँ।
सलमान सूर्य
बाग़पत, उत्तर प्रदेश ( भारत )